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________________ इह भव परभव दुःखदाणी ॥ प्र० ॥ ५ ॥ गज कुम्भ दलै मृगराज हणौ ॥ पिण दोहिली निज आत्मा दमणौ ॥ इम सुण बहु जीवचेत्या जाणी ॥ प्र० ॥ ६ ॥ भाद्रवी पूनम उगणीसो ॥ कर जोड़ नमं वासुपूज्य दूसो ॥ प्रभु गांतां रोम राय हुलसाणी ॥ प्र० ॥ ७॥ श्री विमल जिन स्तवन । कायनमांगाकायनमांगाहोराणाजीमांगपूर्णप्रितवी (कांयनमांगाहो एदेशी) शरणे तिहारहो विमलप्रभु ॥ सेवकनी अरदाश ॥ भायो शरण तिहारहो॥ विमल करण प्रभु विमलनाथजी। विमल भाप मल रहीत ॥ विमल ध्यान धरतां हुवे निर्मल ॥ तन मन लागी प्रीत ॥ साहेव शरणे तिहारहो ॥ १ ॥ विमल ध्यान प्रभु आप ध्याया ॥ तिण सं हुआ विमल जगदीश ॥ विमल ध्यान वलि जे कोई ध्यासी ॥ होसी विमल सरीस ॥ सा० ॥ २ ॥ विमल गृहवासे द्रव्य जिनंद्र घा॥ दीक्षा लियां भावे साध ॥ केवल उपना भावे जिनेश्वर। भाव विमल अाराध ॥ सा० ॥३॥ नाम स्थापना द्रव्य विमल थी कारज न सरेकोय ॥ भाव विमल घी कारन सुधरे ॥ भाव नप्यां शिव होय ॥ सा० ॥४॥ गुण गिरवो गंभौर धीरतं ॥ तूं मेटण जम वास ॥ में तुम क्यण मागम शिर धास्या ॥ तूं मुझ पूरण आश।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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