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________________ । २२६ ) नित्यप्रति उद्यम अति घणोरे मुक्त हामी धुन कौनही लाल ॥ ७॥ स्त्रियादिक ना संगनेरे जाण्या विष फल जेमहो लाल हांसकितीहलने हणौहे हिये निर्मला हेमहो लाल ॥ ८॥ सौयल धयो नवबाड़ सं रे धुर बोला ब्रह्मचारहो लाल ए तप उत्कृष्टो घणोरे सुरपति प्रणमें सारहो लाल ॥ ६॥ उपशम रस माहे रम रह्यार बिबिध गुणारौ खाणहो लाल एकंत कार्म काटण भणौरे संवेग रस गलताणहो लाल ॥ १०॥ खाम गुणारा सागरूर, गिरवो अति गम्भीरही लाल । उजागर गुण आगलारे मेरु तणो पर धौरहो लाल ॥ ११ ॥ कठिन बचन कहिवा तणोरे, जाणके लोधी नेमहो लाल । बहुल पणे नहौं बागस्योरे बचनामृत संप्रमही लाल ॥ १२॥ बिबिध कठिन बच सांभलौरे, ज्यारे मनमें नहौं तमायहो लाल । तन मन वच मुनि बश कियोरे ए तप अधिक अथायहो लाल ॥ १३ ॥ मु० ॥ चोथे आरे सांमल्यारे क्षमा शूरा अरिहन्तहो लाल बिरला पंचम काल मेरे हेम सरिषा संतही लाल ॥ १४ ॥ मु. निरलोभी मुनि निर्मलारे आर्जव निर अहंकारहो लाल हलका कर्म उपधिकरौरे सत्यवच महा सुखकारहो लाल ॥ १५ ॥ मु. संयम में शूरा घणारे । बर तप निविध प्रकारहो लाल उपधि अना.
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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