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________________ ( २०६ ) ।। बुध संजोय र ॥ द्र० ॥ १४ ॥ वले द्रव्य तीर्थंकर होती देवकी र, रोहिणी ने बलभद्र वखाण रे । पिण नंसनिनेश्वर ग साध साधवियां रे, नहीं बांधा ते , गुण विना द्रव्य पिछाण ये ॥ द्र० ॥ १५ ॥ यां तीनां ने उल्टा पगे लगाविया रे, पिण गुण विन द्रव्य न वाद्यो काय रे । चोवोसत्यो करता निगुणा किम वादसी रे, तुमे हिरदे विमासी बुध सूं जोय रे द्र० ॥ १६ ॥ वल द्रव्ये तीर्थंकर श्रेणिक राय थोरे, श्रो वीर जिनेश्वर दियो बताय । पिग बौर जिनेश्वर ग़ साधु ने साधवियां रे, श्रेणिक रा क्यूं नहीं वांद्या पाय रे ॥ ० ॥ १७ ॥ तियां उल्टो श्रेणिक ने पगां लगावियों रे, पिया गुग् विन द्रव्य ने वांयो कोये र े । चोवीसत्था करता निगुण किम वांदसौर, हिरदै विमासी बुध सू जोय रे ॥ द्र० ||१८|| मोटी सतियां घी रानी कृष्ण नौ नं, त्यांने तीर्थकर वांदगा गे घणो उलास े । तो द्रव्य तोर्थंकर वांदे गुग विना रे, तो कृष्णा स्यूं नहीं करती घर वास रे ॥ द्र० ॥ १६ ॥ बले मोटी सतियां श्रेणिक री राणियां र, त्यां` तौर्घङ्कर वांदण रो घणो उलास रे । ने द्रव्य तीर्थंकर वांदे गुण विना रे, ते श्रेणिक सूं नहीं करती घर वास से ॥ द्रः ॥ २० ॥ त्यां भरतार 1 1
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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