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________________ ( २०३ , केहवा आकार कहिवारा कै, गुण निमन चारित परिणामा ॥ था० ॥ ६२॥ इम कहि कहिने कितरोक कहिये, इण थापना निक्षेपा रो अधिकार। गुण बिन थापना बादे नाहौं, त्यांनिश्चय सफल किया अवतार ॥ था० ॥ ६३ ॥ ॥ दोहा ॥ ए थापना निक्षेपी कह्यो, हिवै द्रव्यनी करज्यो पिछाण। कई द्रव्य निक्षेपी सांभली, भूल्या लोक अजाण ॥ १ ॥ ते गुण बिन बांदे द्रव्य नें, कूड़ा कुहेतु लगाय। अतीत अनागत कालनी, माने गुण पर्याय ॥ २॥ कह साध हुआ श्री ऋषभ ना त्यां किया चोबिसथी ले नाम । चोबीस तीर्थकर हुआ नहीं, त्याने बाद किया गुगा ग्राम ॥ ३ ॥ इम कहि कदि ने भोला लोक में कर निगुण वादगा गै थाप । जंधी श्रद्धा प्ररूप में बाहला बांध पाप || ४ ॥ त्यां स्यूँ काम पड़े चरचा तणो, ते झूठ बोल फिर जाय । त्यांरी श्रद्धा ने झूठ प्रकट करू, ते सुणज्यो चितलाय ॥ ५ ॥ * ढाल चौथी * ( आउखो टूट्यां ने साधा का नहीं रे। एदेशो) तीर्थंकर होसी आगमिया काल में रे, त्यांने बांदै
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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