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________________ छव दिशिरो मर्याद करो तिण उपरान्त जाई पांच आसव द्वार सेऊं नहीं सेवाऊं नहीं तथा जेतली भोमिका आगार राख्या तिगमें द्रवग्रादिकरी मर्याद करोति उपरान्त सेउ नहीं सेवाउं नहीं मनसा वायसा कायसा द्रवाथको एहिज द्रवा क्षेत्रथको सर्व नेत्रां में कालधको जेतलो काल राख्यो भाव थकी राग द्वेष रहित उपयोग सहित गुणघको संबर निर्जरा एहवा म्हांरै दशमा व्रतके विषै जे कोई अतिचार दोष लागते आलोउ । नवीं भूमिका वारली वस्तु अणाई होवे १ मुक लाई होवे २ शब्दकरो आपो जगायो होय ३ रुप देखाई आपो जगाया होय ४ पुद्गल न्हाखी आपो नगायो होय तस्स मिच्छामि दुक्कडौं । ॥ इति ॥ इग्वारमं पोषद व्रत पांचां बोलांकरी श्रलखीन वाधको । असाण पाय खादिम खादिमनां पञ्चखाण आहार पाणी मेवादिक पान सुपारीदिक को पचवाण अम्मनां पञ्चखाग उमकमगो सुवन्ननां पञ्चखाण मैथुन सेवाका त्याग वोसरायो हुयो रन सोना का पचखाण वाग विलेवन नां पञ्चवाण पुष्पमाला गुलाल रंगादि चंदनादिक नो विलेपनका त्याग माला
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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