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________________ विषबाणिज्ज १० जन्तु पिलणयां कम्म ११ जहरको व्यापार कल घाणी प्रमुख व्यापार निलच्छणियां कम्म १२ दवगोदावणियां कम्म १३ कसी वधियादि कर्म ते दावानलदेवो कर्म ज्यानवरांने बाधी कर्म सर द्रह तलाव सोसणियां कम्मे १४ असजण सरोवर द्रह तलाव सोषाया ते कर्म असंजतीने पीसगियां कम्म १५ ॥ इति ॥ पोषावा नो कर्म __ए पन्दी कर्मादान मर्याद उपरान्त सेवा सेवाया होय तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥ इति ॥ ___ आठमं अनर्थ दंड बिरमण ब्रत पांचा बोलांकरी पोलखोज , द्रवाथको अवज्माणचरियं १ भूडा ध्यान नों आचरवो पम्माय चरियं २ सपयाणं ३ पावकम्मोवएसं ४ प्रमाद करवो प्राण हिन्सा पाप कर्मको उपदेश - ए च्यार प्रकारे अनरथ दंड आठ प्रकारका आगार उपरान्त से नहीं आएहिउवा १ नाएहिउवा २ माघारिहिउवा ३ आपणे हित न्यातिके हित . घरके हित , परिवारहिउवा ४ मित्तहिउवा ५ नागहिउवाई परिवार के हित मित्रके हित नाग देवता, निमित्त
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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