SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भंघल अधोवायु ( १५६ ) नसाइणं उड्डःएणं वाय निसगणं भमलीए उवासी डकार पित्तमुच्छाए सुहुमेहिं अङ्गसंचालहिं पित्तकर मूळ सूक्षमपणे शरीरको हालयो सुसेहिं खलसंचालेहिं सुमेहिं दिट्रिसंचालहिं सूक्षमपणे श्लेष्मको संचाल सूक्षम दृष्टी चलायो एवमाइएहिं आगारहिं अभग्गो अविराही इत्यादिक यह माघार से ध्यान भांगे नहीं वीराधना ज हुज्ज मे काउस्लग जाव अरिहं नहीं होज्यो मर्ने काउसगते ध्यान जिहां तक अरि तागं भगवंताणं नमोकाविणणं नपारेमि भगवन्तने नमस्कार करीने नहीं पार ताव कार्य ठाणेणं मोगा । तठाताई शरीरसे स्थानले सौनकरी ध्यानकरी अप्पागं वोसगमि ॥ इति ॥ यातमा में पापथको बोसराऊ । माणगां हुन्त ॥ अथ लोगस्स ॥ लोगम्स धन्म तित्यय रजि धर्म तिर्थ फरता चउवासपि के चोयीस ये उनोवगरे उध्योतकारी कित्ताइस फीति करू लोक यो विषे अरिहन्त परिचन्ताकी
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy