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________________ ( ११६ ) ७ निर्जग रूपोक अरूपी अरूपौ छै ते किणन्याय निर्जग जीव का परिणाम के पांच वर्ण पावे नहीं इश ल्याय। ८ बंध रूपोंकि अरुपी, रूपी किगान्याय बंध ते शुभ अशुभ कार्स छ, कसं ते पुद्गल है, पुद्गल ते रूपी ६ मोक्ष रूपौके अरूपी अरूपौ छै ते किगन्याय समस्त कर्मास सुकावे ते मोन अरूपी ते जीव सिद्ध थया ते मां पांच वर्गा पावे नहौं गान्याय । ॥ लड़ी दूजी सावद्य निवद्यकी ॥ १ जीव सावद्यक निवंद्य दोन हौ ते किणन्याय चोखा परिणामां निर्वद्य खोटा मरिणामा सावध छ। २ अजीय सावद्य निर्वद्य दोन नही चजीव छ। इ पुन्य सावध निर्वद्य; दोन नहीं अजीव है। ४ पाम सावध निर्वद्य दोन नहीं अजीव है। ५ यासव सावद्यके निर्वद्य; दोनुं ही छ किणन्याय सिध्यात्व पासव अव्रत घासव प्रसाद पासव, कपाय भासव, ए च्यार तो एकान्त सावध के,
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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