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________________ ( १११ ) सुखारी तुलजरे ॥ अ० ॥ २२ ॥ ते पिग मुख सासता नहीं आवै तेहनों पारजरे । संसारना मुख छै कारमा जाती न लगै बारजरे ॥ अ० ॥ २३ ॥ संसारना मुख थिर नहीं जैसी आभा रिवायजरे । ए : बौण संतां बार लागै नहीं जसौ कायर बाहरे || आ० ॥ २४ ॥ तन धन जोबन कारमों जैसो कसुंबल 'गजरे | दोन सात पांचका देखणा पछे होय नाय विरङ्गजरे || अ० ।। २५ || गर्भ जन्म मरण तणां भाष्या श्रीजिनरायजरे । ते धर्म कोया थौ छुटौये धर्म दयामय थायजरे || अ० ॥ २६ ॥ इम जांणी धर्म ..आदरो ढोल न कौन तामजरे । सो खोण नावै सो आवै नहीं ते सुंग राख़ो चित ठामजरे ॥ अ० ||२७|| ॥ दुहा ॥ 1 4 J 'धर्म कथा सुंग परखदा' हिवडै हरषित थाय । सगत सारु व्रत आदरी पाया जोण दिस नाय ॥१॥ सेठ सुदर्शन तिण समैं बोल्यो जोड़ी हाथ | पाइलै भव हुं कुंगहुं तो ते कृपा कर कहो खामौनाथ ॥२॥ धर्मघोष साधु तौण अवसर सेठ सुदर्शन ने कहै आम । पाछल भव कहुंकुं थांहरो ते सुंग राखे चित ठाम ॥३॥ २०:
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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