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________________ ( १०६ ।) राजातौं पटरांणी अभिया नार । रूपे रंभा सारषौ सुख भोगवै संसार ॥ ४ ॥ तिण चंपा नगरौ बाहिरै ईसांण कुणरै माय। बाग एक के रलियां मणों के उत्तम सुखदाय ॥ ५ ॥ ते फल्यो फुल्यो रहै सदा पिण वसंतरुत विशेष। तिहां नरनारी अनेक क्रिड़ा करै सुख पामै नौजरां देख ॥ ६ ॥ अभिया रांणों तिणसमें भाई बसंतसत जाण । वाग सुंण्यो फुल्यो फल्यो जब वोले एहवी वांण ॥ ७॥ सुदर्शण सेठ के बखान की ॥ ढाल ३२ वीं ॥ 5000+KORK (माज आगांद मन उपेनों सुणा प्राणीरे एदेशी) मनरो मनोरथ पूरी थयो। सुंगाप्रांणौरे । ममचिंताविया सरीया काज आज संग प्रांगोरे । नगमें नस फैल्यो घणों । सु० । म्हारी रही सौलस्युं लाज । प्रा०॥ १ ॥ संजम पाखै तूं नीवड़ा। सु. । पामैं नहीं भव पार । ०। जनम मरण करतो थको । मु० । भमीयों ईण संसार । आ० ॥२॥ कवु एक नरक निगोद में । सु० । कब एक तिर्यंच मंझार। भा० । कबु एक सुर नर देवता । मु० । ईण रोते : भमौयों संसार । प्रा० ॥३॥ कबु एक ईष्ट संजोगीयो।
SR No.010500
Book TitleJain Hit Shiksha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
PublisherKumbhkaran Tikamchand Chopda Bikaner
Publication Year1925
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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