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________________ जैन-गौरव-स्मृतियां HEART योग रहा । स्थानीय दादावाड़ी का श्रेय आपही को है। इसी प्रकार से आपने कई जातीय कार्य कर एक आदर्श रक्खा । मद्रास के ६ मील दूर ऋषभदेव भगवान के मन्दिर निर्माण में आप अग्रसर रहे । सं० २००४ में आपका स्वर्गवास हो गया । आपके डूगरचन्दजी, जीवणचन्दजी, सदनचन्दजी, कमलचन्दजी, खूबचन्दजी, लालचन्दजी, पदमचन्दजी, प्रेमचन्दजी, एवं ऋषभचन्दजी नामक दस पुत्र हैं। वर्तमान में श्री मन्दिर और दादावाड़ी का शुभ कार्य श्री जीवनणचन्दजी तथा मदनचन्दजी के आधीन है । श्राप दोनों बन्धु उत्साही और धर्मनिष्ठ है। श्री जीवणचन्दजी के हुक्मीचन्दजी, . सज्जनचन्दजी निहालचन्दजी, बालचन्दजी, नामक चार पुत्र हैं। श्री मदनचन्दजी के किररतूचन्दजी, ज्ञानचन्दजी एवं विमल चन्दजी ये तीन पुत्र है। दादावाड़ी के अन्तर्गत सुन्दर जिनालय है जिसकी लागत हजारों की है। श्री सेट बहादुरमलजी का जन्म सं० १६३४ का है । आप १६५१ में मद्रास आए । अपने ज्येष्ठ माता सुखलालजी के साथ व्यवसाय करते रहे । ११ दिसम्वर १६४२ में आप दिवंगत हए। श्री सागरमलजी और सायरमलजी ये दो पुत्र हुए। . श्री सेठ कानमलजी का जन्म सं० १६४१ में हुआ । सं० १६५५ में मद्रास E: आये आपके सरदारमलजी, लक्ष्मीचन्दजी, कृपाचन्दजी, एवं प्रकाशमलजी नामक चार पुत्र है। र्तमान में आप तीनों भ्राताओं की मद्रास में दुकानें हैं। मद्रास के प्रतिष्ठित व्यवसायी हैं । आप लोगों की बड़ी प्रतिष्ठा है। आपके परिवार की ओर से : नागौर स्टेशन पर एक आराम प्रद सुन्दर धर्मशाला है एवं नागौर में एक सुन्दर जिन मन्दिर भी बनवाया है । . आपका पता |-- .. श्री सुखराजजी जीवणचन्दजी समदड़िया १७ विरपनस्ट्रटः साहुकार पेठ मद्रास *श्री सेठ रावतमल जी सूरजमलजी वैद मेहता-मद्रास स्थानक वासी आम्नाय उपासक श्री सेठ रावतमलजी नागौर से मद्रास आये एवं अपनी दुकान स्थापित की । आपके पुत्र सूरजमलजी ने व्यापार में बड़ी ख्याति प्राप्त की । श्राप के श्री शम्भूमलजी गोद आए । . . श्री सेठ शम्भूमलजी का जन्म सं० १६४६ का है । आप धार्मिक वृत्ति के उदार महानुभाव हैं। आपके यहां से भिखारियों को सदाव्रत दिया जाता है। स्थानीय जैनस्कूल में आपकी ओर से २१०००) प्रदान किये गये तथा आप प्रति वर्ष मार्मिक एवं शिक्षा के कार्यों में सहायता देते रहते हैं । स्थानीय जैन समाज में - आपकी अच्छी प्रतिष्ठा है । अापके मांगीलालजी मदनलालजी, कमलचन्दजी
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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