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________________ न-गौरवनमृतियां ..* * ७४१ । सम्य के रूप में आपकी सेवायें स्मरणीय है। . . ___ आपका मूल निवास स्थान आबू के अन्तर्गत रोहीडा' नामक ग्राम है.. र पोरवाड़ सिववी गोत्रोत्पन्न हैं। श्री पार्श्वनाथ हाईस्कूल वरकाणा के आजीवन इस्य के रूप में आपका शिक्षा प्रेम व्यक्त होता है। श्री पुखराजजी धरमचन्दनी : र गणेशमतजी नामक आपके तीन पुत्र हैं। नं. १७-२१ विठ्ठलवाड़ी परं "त्रिलोकचन्द मोतीचन्द" के नाम से इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का व्यवसाय होता है । इसके अतिरिक्त अहंमदवाद एवं यम्बई में भी न्न २ नामों से सुविस्तृत रूप से व्यवसाय होता है । दी हिन्दुस्थान मर्चेन्ट एसी. येशन के आप मेम्बर हैं। श्री सेठ जुहारमलजी मोतीलालजी -वम्बई .. ... इस फर्म के मालिक श्री रूपचन्दजी कोठारी के सुपुत्र श्री रा० साल मलजी, जुहारमलजी, कुन्दनमलजी तथा मोतीलालजी है। श्राप ( खींचा). ठारी गोत्रोत्पन्न जैन है । शिवगंज के आप मूल निवासी हैं । आपके परिवार की र से वरकाणा में श्री पार्श्वनाथजी का मेला भरवाया एवं हरकचन्द रूपचन्द खार मिडिल स्कूल भेंट की। गय साहब नेनमलजी श्री पवनाथ न हाईकल काण के आजीवन सदस्य है । आपके श्री जीवराजजी, भैरोलालजी; गौतमन्दजी, ज्ञानचन्दजी, हुक्मीचन्दजी. अमृतलालजी और बाबूलालजी पुत्र है। "मेसर्स हरकचन्द रूपचन्द" फर्म नायनप्पा नायकन्ट्रीट मद्रास में विगत १ वर्षो से एवं "जहारमल मोतीलाल" कालवा देवी रोड़ जहार पैलेस बम्बई २ ३५ वर्षो से जनरल मर्चेन्ट एवं कमीशन एजेन्ट का व्यवसाय बड़ी सफलता से र रही है। आपका यह समृद्ध परिवार मिलनसार, एवं उदार स्वभावी, एवं धार्मिक न में मुख्यरूप से भाग लेने वाला है। शिवगंज (मारवाड़) समाज में पि लोगों की बड़ी प्रतिष्ठा है। श्री सेठ माणेकलाल भाई अमोलक भाई, घाटकोपर, बम्बई .. श्री नगीनदास भाई तथा मारणेकलाल भाई सेट अमोलक भाई के पुत्र है। । नगीनदास भाई ने गांधी शिक्षण के तेरह भाग प्रकाशित करवाये। सर भाई राष्ट्रवादी होते हुए धर्मवादी पा हैं। हर धार्मिक कार्य में आग हात्मा गांधीजी को एक मुश्त एक लाख रुपया भेंट किया । यस्बई की राप्तीय तथा मिक प्रवृतियों में आपका मुख्य हाथ रहता है। आपकी ओर से जैन स्थानक में तकालय एवं सुन्दर वाचनालय है। श्री मागकन्नाल भाई के सुपुत्र का नाम रतन ल भाई है जो बहुत होनहार युवक श्री माणेकलान भाई काम के जल रेटरी भी है।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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