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________________ जैन-गौरव स्मृतिय .. PAHARMAHARASHTRA जमीदारी भी है । वर्तमान में आपकी फर्म पर "श्री सेठ चांदमलजी वांठिया" के नाम से व्यापार होता है । अन्यत्र "धुलियन कम्पनी" के नाम से व्यापार होता है । आप कई यूरोपियन कम्पनियों के डायरेक्टर हैं जैसे “बद्वार टी टेन्बर कं० लि० वसुमति टी कम्पनी लि०, मुरसानी टी कम्पनी लि० इत्यादि ६ कंपनियों के डायरेटर हैं। आपके पूनमचन्दजी और पदमचन्दजी नामक दो पुत्र हैं। श्री पूनमचन्दजी. स्वतंत्र रूप व्यापार करते हैं और पदमचन्दजी ने बी० ए० एल० एल० बी० । किया है और एडवोकेट की परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। .. पता- १ कैनिंग स्ट्रीट कलकत्ता . *श्री गणेशीलालजी नाहटा एडवोकेट, कलकत्ता ... आप जीयागंज बालूचार ( मुर्शिदावाद) निवासी हैं। आपके पिता श्री अमरचन्दजी ने आपको उच्च शिक्षा के हेतु कलकत्ते में विशेष रूप से भेजा। सन् १९१५ में आपने एम० एस० सी०, एल० एल० वी० की परीक्षा उच्च श्रेणी से उत्तीर्ण कर अपनी प्रैक्टिस प्रारंभ की। प्रतिभा के कारण इस क्षेत्र में अच्छी र ख्याति प्राप्त की। कलकत्ते के मशहूर वकीलों में आपकी गणना हैं । कलकत्ते .. के सार्वजनिक क्षेत्र में भी आपका विशेष सम्मान हैं । विशेष रूप से जैन समाज के आप आगेवान कार्यकर्ता सज्जन माने जाते हैं । धार्मिक और सामाजिक कार्यों में पूर्ण दिलचस्पी और सहयोग रखते हैं । धार्मिक नियमों का आप काफी पालन करते हैं। • सराक जाति के उद्धार कार्य में आपका महत्वपूर्ण हाथ रहा था । पाँवा- . पुरी तीर्थ के संरक्षण कार्य में भी आपने बड़े मनोयोग से भाग लिया था। . ★पं० श्री परमेष्ठीदासजी न्यायतीर्थ-ललितपुर. आप काँग्रेस के एक योग्य और कर्मठ कार्यकर्ता है । सन् ४२ के आन्दोलन में आप सूरत में भारत रक्षा कानून की दफा २६ के अन्तर्गत गिरफ्तार किए गये थे। तब आपने सावरमती जेल में रह कर लगभग १००० राजनैतिक कैदी साथियों को हिन्दी पढ़ाई और वहाँ जैनधर्म पर कई भाषण देकर जैन धर्म का मर्म समझाया। ___गुजरात और विशेषतः सूरत में आपने हिन्दी प्रचार का बहुत बड़ा कार्य किया। राष्ट्रभाषा प्रचार मण्डल की स्थापना की और कई सौ हिन्दी शिक्षक तथा हिन्दी ज्ञाता तैयार किये । इस प्रकार से आएने राष्ट्र आपा की अनन्य रूप -new.unces.33 से सेवा की।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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