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________________ जैन-गौरव-स्मृति - श्राये एवं सं० १६०५ में उपरोक्त नाम से फर्म स्थापित कर व्यवसाय चालू किय - वर्तमान में फर्म के मालिक सेठ करनीदानजी धाड़ीवाल के सुपुत्र श्री रतनलाल केशरीचन्दजी एवं सूर.:.मलजी है। आप तीनों सहोदर शिक्षित तथा समझद . युवक है। श्री रतनलालजी स्थानीय जैन मन्दिरजी व दादावाड़ी के ट्रस्टी है नागपुर शेयर एण्ड स्टाक एक्सचेंज के सेम्बर तथा ना० चेम्बर ऑफ कामर्स खजांची है । इतवारी बाजार में आपकी फर्म लेन देन हुण्डी चिट्टी का काम करती * सेठ चुन्नीलालजी पारसप्रतापजी हाकिम कोठारी, नागपुर आपके पूर्वज बीकानेर राज्य में हाकमी करतेथे। . इसीलिए हाकिम कोठारी कहलाए हैं । सेठ गिरधारी .लालजी के ३ पुत्र थे । चुन्नीलालजी, सायरमलजी तथ मेवराजजी। सेठ चुन्नीलालजी के पुत्र हुए केशरीमलजी घ पारस प्रतापजी । श्री पारस प्रतापजी का जन्म बीकानेर में वि० सं० १६६० में हुआ। आपने वि० सं० १६८२ में नागपुर के इतवारी बाजार में सोना चांदी ओली में सराफी की दुकान की । अपने बुद्धि ल से कारोबार में अच्छी उन्नति हुई। समाज में काफी प्रतिष्ठा है सार्वजनिक कार्यों में भी आपकी पूरी दिलचस्पी है। आपके लूनकरणजी नामक एकपुत्र और ६ पुत्रियां है । ' * सेट मूलचन्दजी गोलेला, जबलपुर . मन्दिर भार्गीय आम्नाथ के अनुयायी स्वर्गीय प्रतापचन्दजी गोलेछा के ! AREETueathe... H2S12...... j n ५. . .. : . . 1515 ...: श्री जीवनचंदजी : . .
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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