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________________ जैन-गौरव-स्मृतियाँ आचार्य भिक्षु ने उग्रक्रिया काण्ड को अपनाया और उसके कारण जनता .. को प्रभावित करना आरंभ किया । आद्य सम्प्रदाय संस्थापक को अनेक प्रकार की बाधाओं का सामना करना होता है । भिक्षुजी ने भी दृढ़ता से काम लिया । वे अपने उद्देश्य में सफल हुए। उन्होंने अपनी सम्प्रदाय का एक दृढ़ विधान बनाया । उस विधान में सम्प्रदाय को संगठित रखने वाले तत्व दूरदर्शिता के साथ सन्निहित किये । आपने अपने समय में. ४७ साधु और ५६ साध्वियों को अपने पन्थ में दीक्षित किया था। आपका स्वर्गवास संवत् १८६० भाद्रपद शुक्ला १३. को- ७७ वर्ष की अवस्था में सिरियारी ग्राम में हुआ.। आपके बाद स्वामी . भारमलजी आपके पट्टधर हुए।... १ आचार्य भिक्षु, २ भारमलजी स्वामी, ३..रामचन्द्रजी स्वामी ४जीत: मलजी स्वामी, ५ मघराजजी स्वामी, ६ माणकचन्दजी स्वामी, ७ डालचन्दजी स्वामी, कालूरामजी स्वामी ये आठ आचार्य इस सम्प्रदाय के हो चुके हैं। . वर्तमान में आचार्य श्री तुलसी गणी नवें पट्टधर हैं। आचार्य तुलसी वि० सं० १६६३में पदारूढ हुए। आप अच्छे व्याख्याता, विद्वान्, कवि और कुशल नायक हैं। आपके शासन काल में इस सम्प्रदाय की बहुमुखी उन्नति हुई हैं। . इस सम्प्रदाय की एक खास मौलिक विशेषता है. वह है इसका दृढ़ संगठन । सैकड़ों साधु और साध्वियाँ एक ही आचार्य की आज्ञा में चलती हैं इस सम्प्रदाय के साधुसाध्वियों में अलग २ शिष्य-शिष्यायें करने की प्रवृत्तिं नहीं है। सब शिष्य-शिष् .यें आचार्य के ही नेश्रायं में की जाती हैं। इससे संगठन को किसी तरह का खतरा नहीं रहता । संगठन के लिए इस विधान का बड़ा भारी महत्व है। इस सम्प्रदाय में आचार्य का एक छत्र शासन चलता है। . . विक्रम संवत् २००७ तक सब दीक्षायें १८५५ हुई। उनमें साधु. ६३४ और साध्वियां १२२१ । वर्तमान में ६३७ साधु-माध्वियां आचार्य श्री तुलसी के नेतृत्व में विद्यमान हैं। इस प्रकार भगवान् महावीर की परपरा का प्रवाह स्याद्वाद के सिद्धान्त के रहते हुए भी अखन्डित न रह सका और वह उक्त प्रकार से नाना सम्प्रदायों गच्छों और पन्थों में विभक्त हो गया । काश् यह विभिन्न सरितायें पुनः अखण्ड जैन महासाग़र में एकाकार हों ! . - जैन मुनिराजों के परिचयःहम इस ग्रन्थ में वर्तमान विशिष्ठ विद्वान जैन मुनिराजों का परिचय भी देना चाहते थे। इस संबन्ध में जैन समाचार पत्रों में भी विज्ञप्रियां प्रकाशित की । स्थान २ पर मुख्य २ श्रीवकों से पत्र व्ययहार भी किया किन्तु यथेष्ठ सामग्री : प्राप्त नहीं हो सकी । अतः यह प्रकरण अपूर्ण. ही रहा है। जैन मुनिवरों तथा जैन : . • संस्थाओं के परिचय एक अलग परिशिष्ट भाग में प्रकाशित करने का विचार है। ' ।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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