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________________ ५३४ * . जैन-गौरव स्मृतियाँ .. यह स्पष्टतः ब्राह्मण परम्परा का प्रभाव है । ब्राह्मणों की तरह जैनों में भी यज्ञोपवीत . 'पूजा, प्रतिष्ठा आदि कर्मकाण्डों का प्रचलन हो गया । मन्त्र-ज्योतिष आदि का भी.: जैन-अनगारों ने आश्रय लेना आरम्भ किया । कहना होगा कि यह सब पडौसी : संस्कृति का प्रभाव है। जो अनगार पहले वनों में और गिरिकन्दराओं में आत्म . साधन करते थे वे धीरे २ नगरों में रहने लगें और जनसमाज के अधिकाधिक सम्पर्क में आने लगे। निवृत्ति की ओर अधिक मुके हुए अनगार धीरे २ प्रवृत्ति की .. की ओर विशेष झुकते गये । यद्यपि प्रारम्म में इन सबका स्वीकार किसी उब प्राशय को लेकर ही किया गया है तदपि आगे चलकर इनमें विकृति अवश्य आ गई । प्रतिभा सम्पन्न जैनाचार्यों ने दूसरे प्रतिद्वन्दियों के मुकाबले में टिक सकने । के लिए इस तरह प्रवृत्तिमार्ग का अवलम्बन लिया था। . . : ... जैसे जैनों पर अन्य पडौसी संस्कृतियों का प्रभाव पड़ा हैं वैसे जैनों की ... संस्कृति का भी पडौसियों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। भारत में आज भी अहिंसा के . प्रति जो इतनी उदा भावना है वह जैनों का ही प्रभाव है। ष्णव शैव आदि जैनेतर जनता के खान पान और रहन सहन में जो मद्य मांस रहितता और सात्विकता आई है वह जैनों का ही प्रभाव है। हिंसक यज्ञयाग आज नाममात्र शेष रह गये यह जैनों का ब्राह्मण संस्कृति पर प्रबल प्रभाव है। सैंकडों नहीं हजारों वर्षों से साथ २ रहने वाली और साथ साथ विकसित : होने वाली संस्कृतियों पर एक दूसरे का प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सकता है। जैनों. पर ब्राह्मणों का प्रभाव पड़ा है और ब्राह्मणों पर जैनों का प्रभाव पड़ा है। इसके पश्चात् भी जब जब जैसी २ परिस्थिति आती गई वैसे २ परिवर्तन जैनधर्म में होते आये हैं। काल और परिस्थिति का प्रभाव प्राचीन चली आती हुई परिपाटियों में परिवर्तन करने के लिए प्रेरणा देता है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक परम्परा में दो पक्ष होते आये है । एक पक्ष आग्रह पूर्वक प्राचीन परम्परा से चिपका रहना चाहता है और दूसरा पक्ष उसमें समयानुसार परिवर्तन का हिमायती होता है। इन्ही. कारणों को लेकर प्रत्येक धर्म में भेद प्रभेद उत्पन्न होते है । जैनों में भी इसी कारण से श्वेताम्बर और दिगम्बर दो भेद पड़ गये । यह. परिस्थिति केवल एक ही धर्म के लिए नहीं परन्तु दुनिया के सब धर्मों के अन्तर्गत इसी तरह भेद प्रभेद होते आये हैं और होते रहेंगे । बौद्धों में महायान और हीनयान, मुसलमानों में शिया और सुन्नी ईसाई धर्म में केथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट; वेद धर्म में शैव, वैष्णव आदि प्रसिद्ध भेद - जैनधर्म के मुख्यतया दो सम्प्रदाय हैं:-१.). श्वेताम्बर और (२) दिगम्बर । यह भेद सचेल-अचेल के प्रश्न को लेकर हुआ है । भगवान महावीर से.' पहले सचेल परम्परा भी थी यह बात उपलब्ध जैन आगम साहित्य और बौद्ध
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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