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________________ kyyyyyyyजैन-गौरव-मृतियाँyyyeyeyayiko कहा था "मैं जब मुर्शिदाबाद गया और वहां सोना, सोना, चांदी और जवाह रात के बड़े २ ढेर देख, उस समय मैंने अपने मन को कैसे काबू में रक्खा यह मेरी अन्तरात्मा ही जानती है ।" इस पर से यह स्पष्ट हो जाता है कि अपनी महान् प्रतिभा के बल से जैनव्यापारियों ने व्यापार के साथ ही साथ राजनैतिक क्षेत्र में भी अपना कितना प्रभाव जमा रक्खा था। जगत्सेठ का इतिहास :--- नागौर से लोटा-डोर लेकर निकलने वाले सेठ हीरानन्द के वंशजों ने इतनी अपार द्रव्यराशि उपार्जित की कि मुगल सम्राटों ने उन्हें जगत्सेठ की उपाधि से विभूपित किया । मुगलसम्राट, नवाब और अंग्रेजीकम्पनी तक उनसे द्रव्य की याचना करती थी। ऐसे महान सेठ के परिवार और उनके तत्कालीन महत्व का थोड़ा सा उलेख करना प्रासंगिक प्रतीत होता है। नागौर के हीरानन्द शोचनीय आर्थिक परिस्थिति से विवश होकर परदेश के लिए निकल पड़े। मारवाड़ से चलते हुए. वे बंगाल में आये। इनके छह पुत्र और एक पुत्री हुई। इनमें से आपके चतुर्थ पुत्र सेठ माणकचन्द्र जी से जगत् सेठ के खानदान का प्रारम्भ होता है। नागौर से निकले हुए हीरानन्द का पुत्र बंगाल और दिल्ली के राजतंत्र में एक तेजस्वी नक्षत्र की भांति प्रकाशमान रहा । अठारहवीं सदी के बंगाल के इतिहास में जगत् सेठ की जोड़ी का कोई भी दूसरा पुमप दिखलाई नहीं देता। गरीब पिता का यह कुवेर तुल्य पत्र अप्रत्यन रूप से बंगाल, बिहार और उड़ीसा का भाग्यविधाता . बना हुआ था। उस समय बंगाल की राजधानी ढाका में थी। मुगल साम्राज्य के अन्तिम प्रभावशाली औरङ्गजेब का प्रताप धीरे २ क्षीण होता जा रहाथा । उस समय बंगाल का नबाब अजीमुशान था और औरङ्गजेब ने दीवान के स्थान पर मुर्शिदकलीखों को भेजा था। सेठ माणकचन्द और मुर्शिदवलीखाँ के वीच भाईयों से भी अधिक प्रेम था। ये दोनों बड़े कर्मवीर और साहसी थे। सेठ माणकचन्द के दिमाग और मुर्शिदकुलीखाँ के साहस ने मिलकर एक बड़ी शक्ति प्राप्त कर ली थी। मुर्शिदकुजीखा एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। सेठ मागकचन्द ने उसे उत्साहित करते हुए कहा कि यदि तुम मुर्शिदाबाद नामक एक नवीन शहर
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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