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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ *Swe e (२.) मथुरा का सिंहस्तूप :-- जिसे 'लॉयन केपिटल पीलर' कहा जाता है । पहले तो बौद्ध मान लिया । गया था परन्तु बाद के अन्वेषण से विद्वानों ने यह स्वीकार किया है कि यह एक जैनस्तूप है। (३) साँचीपुर स्तूप :--- "यह स्थान अवन्ति प्रान्त में आया हुआ है। यह प्रान्त दो विभागों में विभाजित था । पूर्वावन्ति और पश्चिमावन्ति । पश्चिम की राजधानी उज्जैन थी और पूर्व की राजधानी विदिशा नगरी के पास ही साँचीपुरी आगई है। वहाँ पर जैनों के ६०-६२ स्तूप हैं। जिनमें बड़े से बड़ा स्तूप ८० फीट लम्बा और ७० फीट चौड़ा है ।" ( मुनि ज्ञानसुन्दरजी) .. . (४) भरहुत स्तूप : यह स्तूप अंगदेश की राजधानी चम्पानगरी के पास खड़ा है। इस समय चम्पा के स्थान पर भरहुत नामका छोटा सा ग्राम रह गया हैं । इस कारण से यह भारहुत स्तूप कहा जाता है। चम्पानगरी के साथ जैनों. का बहुत घनिष्ट सम्बन्ध है । यह वासुपूज्यस्वामी के कल्याणकों की भूमि तयार भ० महावीर के केवल कल्याण की भूमि होने से तीर्थरूप है । बौद्धों का इस नगरी के साथ विशेष सम्बन्ध नहीं रहा है अतः यहाँ का स्तृप जैन ही सिद्ध होता है । ( मुनि ज्ञान सुन्दर) . (४) अमरावती स्तूपः-यह स्तूप बड़ा विशाल है। यह दक्षिण भारत में है। महामेघवाहन चक्रवर्ती राजा वारवेल ने अपनी दक्षिण-विजय की स्मृति में अड़तीसलक्ष द्रव्य व्यय कर के विजनमहाचैत्य बनवाया था। इसका उल्लेख सम्राट के खुदाये हुए शिलालेख में है जो उड़ीसा की खण्डगिरी पहाड़ी की हाथीगुफा से प्राप्त हुआ है । सम्राट् खारवेल जैन थे अतः उनका बनवाया हुआ यह रतृप अन्य धर्म का नहीं हो सकता है। . . . -(मु. ज्ञानमुन्दरजी) जैनातुश्रुति के अनुसार कोटिकापुर में जम्बूस्वामी का तूप था। राजाबली कथा में इसका उल्लेख है । तिल्योगाली पइएणय में इस बात का प्रमाण मिलता है कि किसी समय पाटलिपुत्र जैनधर्म का प्रमुख केन्द्र था; नन्टों ने यहां पर पाँच जैनस्तूप बनवाये थे जिन्हें कल्कि नामक एक दुष्ट
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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