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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ *SASAR यह बात अवश्य है कि पश्चिमी विद्वानों ने वैदिक और बौद्ध धर्मों के स्मारकों. और साहित्य के सम्बन्ध में विशेष लक्ष्य दिया है और जैनधर्म के प्रति उपेक्षा की है जिससे जैन स्मारक विशेष प्रकाश में नहीं आ सके । परन्तु गत अर्ध.. शताब्दी से पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ और उन्होंने इस सम्बन्ध मे छानबान कर अनेक नवीन रहस्यों का उद्घाटन किया है। ये स्मारक जैनधर्म की प्राचीनता, भव्यसमृद्धि एवं उज्ज्वल अतीत के परिचायक होने के साथ ही साथ भारतीय इतिहास, संस्कृति, कला, स्थापत्य . और शिल्प के श्रेष्ठ प्रत क हैं। .. परिचायक होजनधर्म की प्राची अनेक नवीन रहस्यों आकृष्ट हुआ और स्तूपः-कुछ वर्षों पहले पाश्चात्य और पौर्वात्य विद्वानों की यह धारणा थी कि स्तूप मात्र चौद्धों के ही है । इस धारणा के कारण उन्होंने जैनलक्षणों से युक्त स्तूपों को भी चौद्ध मान लिये । परन्तु आधुनिक शोधखोज से यह धारणा मिथ्या सिद्ध हो चुकी है। मथुरा के कंकाली टीले की खुदाई से प्राप्त होते. चाले देवनिर्मित वोह स्तूप सम्बन्धी शिलालेख से यह भ्रम सर्वथा दूर। हो चुका है । डॉ. फल्ट ने लिखा है कि . . .:: The prejudice that all stupas and stone raisings must necessarily be Buddhist, las probably breyinled: the recognition of jain structures ng'sich and uplo the present only two undoudted slupus liave been recordod: अर्थात् समस्त स्तुप और स्तम्भ अवश्य बौद्ध होने चाहिए इस पक्षपात ने जैनियों द्वारा निर्मापित स्तूपों को जैनों के नाम से प्रसिद्ध होने से रोका। इसलिये अवतक निम्संदेह नप से केवल दो ही जैनस्तृपों का उल्लेख किया . जा सका है ( परन्तु मथुरा के स्तूप ने निस्संदेह उनके भ्रम को दूर कर दिया है।) . स्मिथ साहब ने लिखा है कि:-In sore cases monuments which are really Jain, bare been erroneously de-cribed as Buddhist. अर्थात्-कई बार यथार्थतः जैन-स्मारक गलती से बौद्ध । स्मारक मान लिये गये हैं। . तात्पर्य यह है कि जैनों के द्वारा बनाये गये स्नूप बौद्ध स्तूपों से भी प्राचीन हैं। देवनिर्मित बोह लूप का उल्लेख कंकाली टीले से उपलब्ध शिला.. १५ गया
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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