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________________ She k जैन-गौरव-स्मृतियाँ * आगे ३० गज ऊँचा एक मनोज्ञ मानस्तम्भ सुन्दरकारीगरी युक्त विद्यमान है। मूडविद्री:--- (जैनकाशी )यह प्राचीन जैनराजा चौटर वंश का प्रसिद्ध नगर था । यहाँ १८ मन्दिर हैं । सब से अच्छा चन्द्रनाथ मन्दिर है। पास में कई जैनसाधुओं के समाधि स्थान है सात मन्दिरों के सामने के भाग में एक पत्थर का बड़ा ऊँचा स्तम्भ है जिसे मानस्तम्भ कहते हैं। यहाँ पंचधातुओं की बनी हुई प्रतिमाएँ हैं। गुरु बस्ती में पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। इसमें कई मूर्तियाँ हीरा, पन्ना आदि नवरत्नों की है। यहाँ धवल, जयधवल, महाधवलादि प्राचीन दिगम्बरग्रन्थ भंडारों में सुरक्षित है । यहाँ जैन ब्राह्मणों की की बस्ती है। श्रमण वेलगोला: यह दक्षिण भारत का महान् तीर्थस्थान है। मैसूर राज्य के हासन जिले * में स्थित है। इस महातीर्थ ने मैसूर को भारत-विख्यात ही नहीं, विश्व विख्यात भी बना दिया है । यहाँ विन्ध्यागिरि और चन्द्रगिरि दो पहाडियाँ पास पास है। चन्द्रगिरि पर असंख्य साधुओं और श्रावकों ने संलेखना करके समाधि मरण प्राप्त किया है। आज भी कितने ही दिगम्बर साधु अपने जीवन के अन्तिम दिन यहाँ व्यतीत करते हैं यहाँ बहुत से शिलालेख उत्कीर्ण हैं। भद्रबाहु और उनके शिष्य चंद्रगुप्त ने यहीं समाधिमरण प्राप्त किया। दसरी पहाड़ी विन्ध्यागिरि पर गोमटेश्वरजी की विशालकाय मूर्ति विराजमान है। यह मूर्ति अपनी विशालता और भव्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। एक ही पत्थर से निर्मित इतनी सुन्दर और विशाल मूर्ति संसार भर में कहीं नहीं है। इसकी ऊँचाई ५७ फीट है । कला की दृष्टि से यह अद्वितीय इसके दर्शन करके दर्शकगण हर्प विभोर हो जाते हैं। अनेक विदेशी कला प्रेमी यात्री इसके दर्शन के लिए आते हैं। यह मूर्ति गंगवंश के २१ वें राजा राचमल्ल के शासन काल में उनके मंत्री और सेनापति समरधुरन्धर, वीर मार्तण्ड चामुण्डराय ने स्थापित की थी। एक हजार वर्ष प्राचीन होने पर भी इसके लावण्य और सौम्य में यही नूतनता विद्यमान है। प्रकृति के श्रावण
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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