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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां * जैसे राम और कृष्ण के अस्तित्व के विषय में शंका नहीं उठाई जाती इसीतरह रिषभदेव के सम्बन्ध में भी शंका को अवकाश नहीं होना चाहिये। भगवान् रिषभदेव का उल्लेख केवल जैन धर्म में ही नहीं । है वैदिक और वौद्ध स्रोतों से भी उनका समर्थन होता है। श्रीमद् भागवत में रिषभदेव की महिमा सुक्तकंठ से गाई गई है । उसके पञ्चम स्कन्ध अ. ३-६ में रिषदेव का वर्णन है जहां उन्हें कैवल्यपति और योगधर्म का आदि उपदेशक बताया है। वह जैनतीर्थकर से अभिन्न है। रिग्वेद में भी इनका उल्लेख है। प्रभासपुराण आदि में भी उनका उल्लेख है । यह पहले जैनधर्म की प्राचीनता के प्रकरण में कहा जा चुका है। . बौद्धाचार्य आर्यदेवने “ सत् शास्त्र" में रिषभदेव को जैनधर्म का आदि प्रचारक लिखा है। धर्मकीर्तिने भी सर्वज्ञ के उदाहरण में रिषभ और महावीर का समान रूप से उल्लेख किया है। धम्मपद के “ उससं पवरं वीरं ? पद न.४२२ में तीर्थकर रिपभदेव का उल्लेख है । इन सब से यही सिद्ध होता है कि भगवान् रिषभदेव इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम धर्स की आदि ५ करने वाले यथार्थ महापुरुष हैं । उनकी वास्तविकता के सम्बन्ध में किसी प्रकार की शंका करना निर्मूल है। भगवान् रिषभदेव मानव जाति के सर्वप्रथम उद्धार का हैं । वेन कैवल जैनधर्म की बल्कि विश्व की विभूति हैं । ये मानव जाति के आदिगरु:आदि उपदेशक हैं । सारा विश्व इनका रिणी है । यही जैनधर्मके इस युग के आद्यप्रवर्तक हैं। . . .. .... इनके पश्चात् द्वितीय तीर्थङ्कर श्री अजितनाथ से लेकर इक्कीसवें तीर्थङ्कर श्री नमीनाथ तक के तीर्थकर अत्यन्त प्रचाीन काल में होगये । इनका काल ऐतिहासिक काल की परिधि से बहुत पहले का है। वावीसवें तीर्थकर श्री अरिष्टनेमि हुए । ये कर्मयोगी श्री कृष्ण के पैतृक भाई थे। सर भाण्डारकरने नेमिनाथ को ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया है। नेमिनाथ देवकीपुत्र कृष्ण के चचेरे भाई और यदुवंश के तेजस्वी तरूण थे । कृष्ण यदि ऐतिहासिक पुरुष. नेमीनाथजीकी. माने जाते हैं तो कोई कारण नहीं है कि नेमिनाथ को.. । ऐतहासिकता : ऐतिहासिक महापुरुष न माना जावे । भगवान् नेमिनाथ के महान् जीवन-कार्य उनकी " ऐतिहासिकता
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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