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________________ * जैन गौरव-स्मृतियाँ २. नेमीनाथ जी का मं० छोटा ( सं. १७१८) ३. संभवनाथ जी का मं० ( सं० १५३२) ४. अजितनाथ जी का बावनजिनालय वाला बड़ा मन्दिर (सं. १५२१ में प्रतिष्ठित एवं १६४४ में पुनरुद्धार ) आदिश्वरजी बावन जिनालय वाला वड़ा मन्दिर । सं० १४२४ में प्रतिष्ठा होना कहा जाता है । वह स्थान चमत्कारिक माना जाता है इस मन्दिर की पूजार्थ महाराव शोभा जी ने एक अरघट्ट सं० १४७५ में भेंट किया। कुन्थुनाथ जी का मन्दिर ( सं० ६५३) श्री चौमुखी जी ऋषभदेव जी का मन्दिर । यह मन्दिर जिले भर में सव से बड़। मन्दिर है जमीन की सतह से १०० फीट ऊँचाई पर स्थित है । सं. १६४४ में श्री हीरविजयसूरि के उपदेश से पोरवाल जातीय श्री सीमा, वीरपाल, महेजल, कपा ने बनावाया। . .... जीरावला पार्श्वनाथ जी का मन्दिर सं. १६३१ ये श्री हीरविजय सूरि द्वारा प्रतिष्ठित । इसके साथ एक भव्य जैनधर्मशाला है जहाँ यात्रियों के ठहरने व भोजन की उत्तम व्यवस्था है । आंबिल शाला भी है। शहर के बाहर के मन्दिर को धुंव की वाड़ी कहते हैं। सं. १४७५ में राज्य द्वारा जैनियों को दिया गया था । यहाँ यतियों की चरणपादुकाएँ थीं जिससे यह स्तूप कहलाता था। थुच शब्द 'स्तूप' का ही विगड़ा हुआ रूप है । सिरोही से १० मील दूर वामनवाड़जी का भव्य जिनालय राजा सम्प्रति द्वारा निर्मापित है।। जोधपुर, बीकानेर आदि राज्यों में जैनियों की बस्ती प्रचुर मात्रा में है अतः यहाँ स्थान स्थान पर भव्य जिनालय विद्यमान हैं। मेंड़ता के भव्य मन्दिर, गोड़ीपार्श्वनाथ का मन्दिर, जोधपुर नगर के मन्दिर. बीकानेर के ३० जिनमन्दिर और ४-५ ज्ञानभण्डार दर्शनीय है । इन रियासतों का कोई भी छोटा से छाटा ग्राम भी ऐसा नहीं है जहाँ भव्य जैनमन्दिर न हो। . जैसलमेर - . * साहित्य के समृद्ध प्राचीनभण्डार, जैनमन्दिरों की भव्य शिल्पकला और पुरतत्त्व की प्रचुर सामग्री की दृष्टि से जैसलमेर का अत्यधिक महत्व
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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