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________________ kakyankakeyजैन-गौरव-स्मृतियाँkiskey प्रेरणा से सौपाश से मुनिसुव्रत स्वामी की मूर्ति लाकर उन्होंने अगाशी में स्थापित की। बाद में संघ ने जीर्णोद्वार कर विशाल मन्दिर बनवाया। सोपारा पहले बहुत बड़ा बन्दरगाह था यहाँ विदेशों से खूब व्यापार होता. था। कोंकरण का राजा जैनधर्मी था अतः उस समय इस प्रदेश में जैनसाधु विचरण किया करते थे। सोपारा कोंकण की राजधानी थी। .. अम्बई :--- यहाँ अनेक भव्यमन्दिर हैं । पायाधुनी में गोडीजी पार्श्वनाथजी का तथा लालबाग में दिगम्बर जैनमन्दिर दर्शनीय है। पावागढ :--- पंचमहाल जिले में यह पहाड़ आया हुआ है। यह प्रसिद्ध जैनतीर्थ . है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार यहाँ से लव-कुश तथा पाँच क्रोड मुनि । मोक्ष पधारे हैं। पर्वत पर प्राचीन जैनमन्दिर और धर्मशालाएँ है ! यहा । दिगम्बर जैन अधिक संख्या में यात्रा करने आते हैं। यह पहाड २६ मील के . धेरे में और समुद्रीसतह से २५०० फुट ऊँचा है । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार यहाँ नौ सुन्दर जिनालय थे । वस्तुपाल के भाई तेजपाल ने यहाँ सर्वतोभद्र नाम का जिनमन्दिर नवाया था जिसमें मूलनायक महावीर 'प्रभु थे । पावागढ पर सम्भव जिनेश्वर की स्तुति करते हुए श्री भुवनसुन्दरजी ने इसे शत्रुञ्जयावतार कहा है । मि. वर्जेस ने लिखा है कि "पावागढ के शिरवर पर रहे. हा कालिका माता के मन्दिर के भाग में अतिप्राचीन जैनमन्दिरों का समृद्ध है। चाँपानेर :--- पावागढ पहाड़ के नीचे बसा हुया यह नगर गुजरात की राजधानी. रहा है। इसे वनराज चावड़ा के मंत्री चाँपा ने बसाया था । चाँपानेर संघ. ने बावन जिनालय का भव्य मन्दिर बनवाया था और उसमें अभिनन्दन प्रभु तथा जीरावला पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं विराजमान थीं। सं० १९१२ में इनकी प्रतिष्टा हुई थी ! महम्मद वेगड़े के समय में चाँपानेर का पतन हुआ। PAN ARTrtonxx latker.NET NOK o tate7
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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