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________________ जैन - गौरव स्मृतियाँ से जहाज आते थे दूरदूर तक विदेशों में जाते थे । बौद्ध साहित्य में भी । इसकी समृद्धि और व्यापार केन्द्र होने का उल्लेख मिलता है । लाटदेश की प्राचीन राजधानी भृगुकच्छ ही था । - कच्छ में अवोध तीर्थ व शकुनिका विहार नामक मुनिसुव्रत स्वामी का मन्दिर है । इस तीर्थका इतिहास तीर्थङ्कर मुनिसुव्रत स्वामी के साथ सम्बन्धित है । भडोच में जितशत्रराजा अपने सर्व लक्षण सम्पन्न अश्व का बलिदान देने के लिए तय्यार हुआ इस समय मुनिसुव्रत स्वामी ने ने उपदेश देकर अश्व को बचाया था । वह अश्व कालान्तर में मरकर महार्द्धिक देव हुआ और उसने प्रभुजी के समवसरण के स्थान में सुन्दर जिनमन्दिर बनवाया और मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिमा स्थापित की। तबसे यह अश्वावबोध प्रसिद्धि में आया ऐसा पौराणिक इतिहास कहाजाता है। इसके पश्चात हेमचन्द्राचार्य के उपदेश से मंत्रीश्वर अम्ड ने शकुनिका बिहार का जीर्णोद्धार करवाया। यह शकुनिकाविहार मुस्लिम काल में रूपान्तरित करलिया गया है। यहाँ की जुम्मामस्जिद जैनमन्दिर में से परिवर्तित हुई है ऐसा. अन्वेषकों ने स्वीकार किया है। श्रीयुत बरजेस महाशय ने आर्कयो लोजिकल सर्वे आफ वेस्टर्न इन्डिया के ६ भागों में लिखा हैं कि "इस काल में भरुच की जुम्मा मस्जिद भी जैनमन्दिर में से परिवर्तित हुई प्रतीत होती है । अब भी वहाँ के अवशेष खण्डित पुरातन जैनमन्दिर के भाग हैं ऐसा मालूम होता है। इस स्थल की प्राचीन कारीगरी, आकृतियों की कोरणी और रसिकता, स्थापत्य, शिल्पकला का रूप और लावएप भारतवर्ष में अनुपम हैं । " जुम्मामस्जिद की छतें और गुम्बज आवृ के मन्दिर के ढंग के हैं । इसमें नकाशी वाले ७२ स्तम्भ हैं यह सब इसके जैनमन्दिर होने के पुष्ट प्रमाण हैं । अब भी यहाँ श्री सुनिसुव्रतस्वामी का मुख्य मन्दिर है। इसके अतिरिक्त सुन्दर जिनमन्दिर है । यहाँ दिगम्बर जैनमन्दिर श्रीनेमिनाथ खामी का है । ((१=२) XXX
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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