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________________ * जैग-गौरव-स्मृतियाँ र NAAMANANARRATHIKARANPratime अहमाल गये और श्री पूरी सहायता कामान भेज दिया कर्माशाह ने शत्रुञ्जय तीर्थ के उद्धार के लिए स्वीकृति माँगी । बहादुरशाह ने फरमान लिख दिया और जूनागढ़ भी फरमान भेज दिया कि कर्माशाह .. को शत्रुबय के उद्धार में पूरी सहायता की जाय। कर्माशाह फरमान लेकर खम्भात गये और श्री विनयमंडनसूरि को साथ लेकर पालीताना पाये । अहमदाबाद के कुशल कारीगरों को बुलवाया । खम्भात में विराजमान शिल्प तथा ज्योतिष के पारंगत विवेकधीरगणि और विवेकमंडन पाठक को पालीताना पधारने की प्रार्थना की। वे भी पधार गये और जीर्णोद्वार का कार्य प्रारम्भ हुआ । अनेक आचार्यों और विशाल भावुक आत्माओं के समुदाय के बीच संवत १५८७ कृष्णा ६ को श्री विद्यामंडनसूरिजी के करकमलों से मूलनायक जी की प्रतिष्टा हुई । अन्य आचार्यों ने अन्य अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा की । कर्माशाह ने लाखों रुपयों का दान दिया। इस उद्धार में सवा क्रोड़ द्रव्य खर्च हुआ । अद्यावधि कर्माशाह द्वारा प्रतिष्ठित मूर्ति ही दर्शकों के चित्त को भक्तिविभोर बना रही है । तेजपाल सोनी का उद्धारः-- . कर्मशाह के उद्धार के ६३ वर्ष के बाद संवत् १६५० में खम्भात निवासी प्रसिद्ध धनिक शाह तेजपाल सोनी ने शत्रुजय तीर्थ के मूलमंदिर का विशेष रूप से पुनरुद्धार किया, और अपने गुरु आचार्य श्री हीरविजयसूरि जी (जगद् गुरु) से इसकी प्रतिष्ठा करवाई। इस अवसर पर तेजपाल ने इतना द्रव्य व्यय किया कि लोग उसे कल्पवृक्ष की उपमा देने लगे। .... :. बादशाह अकबर ने श्री हीरविजयसूरि और उनके शिष्य उपाध्याय भानुचन्द्र को शत्रुजय आदि तीर्थों के अधिकार पत्र दिये। जहाँगीर ने उन फरमानों को पुनः ताजा कर दिये । इस समय सेठ शान्तिदास अति प्रसिद्ध पुरुप हुए । वादशाह जहाँगीर के साथ इनका गाढ़ सम्बन्ध था। सं० १६६१ में शान्तिदास सेठ को अहमदाबाद की सूत्रागिरी प्राप्त होने का उल्लेख मिलता है । सं० १६८६ में शाहजहाँ ने शान्तिदास सेठ को तथा शाह रतनसुरा को शत्रुजय, शंखेश्वर, केशरियाजी आदि तीर्थ तथा अहमदाबाद, सूरत, खम्भात और गाधनपुर आदि शहरों के मन्दिरों की रक्षा ___ का तथा श्री संघ की सम्पत्ति की व्यवस्था का अधिकार दिया था। बादशाह
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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