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________________ Stree- जैन-गौरव-स्मृतियाँ है श्रादि शिखर बनवाये । तेजपाल ने श्री नन्दीश्वर द्वीप की रचना करवाई। पर्वत पर चढ़ने की कठिनाई को दूर करने के लिए वस्तुपाल ने सोपान ( पगथिये ) बनवाये । इसका उल्लेख एक शिलालेख में था । यह शिलालेख गिरिशज पर दोलाखाड़ी में था। यह लेखे भावनगर स्टेट की तरफ से प्रकाशित 'लेखसंग्रह' में छपा हुआ है । इसके अतिरिक्त शहर में यात्रियों के लिए ललितासागर तथा अनुपमासरोवर बंधवाये। .. .. ..... .. :: ___... मंत्रीश्वर वस्तुपाल ने उस समय के.दिल्ली - के बादशाह मौजुद्दीन के साथ मित्रता करके गुजरात के जैनों तथा हिंदुओं के धर्म स्थानकों को न तोड़ने का वचन लिया था।....... ...... वस्तुपाल के बाद महादानी जगडुशाह ने संवत् १३१६ में कच्छ । भद्रेश्वर से महान संघ लेकर सिद्धाचल की यात्रा की और.सात.देवकुलिकाएँ . करवाई: । इसके बाद माण्डनगढ़ के संत्री, पेथड़शाह ने सं..१३२० के लगभंगः धर्मघोघसूरि की अध्यक्षता में महान संघ निकाल कर. सिंद्धाचल की यात्रा की और सिद्धाकोटा कोटि" नामक शांतिनाथ जी का वहत्तर काँश युक्त भव्य जिनालयःबनाया । उस संघ में आये हुए अन्य श्रीमन्तों ने भी वहाँ मन्दिर बनवाये : पेथड़शाह की कीर्ति ४.भव्य जिनालय निर्माता के रूप में अमर है. .. ...... : इसके अतिरिक्त मारवाड़ से आभू मंत्री का संघ, खम्भात के नागराज सोनी.का.संघ आ.ि संघों ने आडम्बर के साथ सिद्धांचल की यात्रा की और अपार द्रव्यराशि व्यय करके भव्य जिनमन्दिरों का निर्माण करवाया। समराशाह का पन्द्रह्वाँ उद्वारः___ संवत् ३६६ में इस महान तीर्थराज पर भयंकर विपत्ति आई । यह * जगमुशाह का मूल गाँव कथकोट (कन्छ) था। उनके पिता व्यापार के लिए भद्रेश्वर चले आये थे । जगडुशाह ने सं. १३१२-१३-१४-१५. में भारतवर्ष के देश-च्यापी भयंकर दुष्काल के वर्षों में लाखों मन अनाज मुफ्त बांटकर 'जगत पालक' की उपाधि प्राप्त की थी। दिल्ली, मिन्ध, गुजरात, काशी, उज्जैन आदि राज्यो . . को अनदान दिया था । दुष्काल के समय अपने अन्नभण्डारी को जनता के लिए खोल देने वाले इस पर की कीर्ति अमर है। 7.4 . . ... . Mo m ote
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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