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________________ SE* जैन-गौरव-स्मृतियाँ #Shree SMS विदेशी जैन साहित्यकार ____ भारतीय प्राचीन धर्म-त्रिवेणी में से वैदिक और बौद्ध साहित्य की योर विद्वानों और संशोधकों ने जितना लक्ष्य दिया है उतना जैन धर्म के . साहित्य की ओर नहीं दिया। यही कारण है कि वे विद्वान् और संशोधक .. भारतीय संस्कृति और साहित्य के सम्बन्ध में ठीक ठीक निर्णयः ... पर नहीं पहुँच सके । यह पहले कहा जा चुका है कि भारतीय संस्कृति और साहित्य का वर्तमान रूप इन तीन धर्मसरिताओं का सम्मिश्रण का . परिणाम है । इनमें से किसी एक की भी उपेक्षा करने से भारतीयसंस्कृति का सच्चा स्वरूप नहीं समझा जा सकता है। हर्ष का विपय है कि उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विदेशी संशोधकों का ध्यान इस ओर आकर्पित हुया और तब से जैन साहित्य और संस्कृति के संबंध में विदेशी विद्वानों .. ने अन्वेपणात्मक साहित्य प्रस्तुत करना आरम्भ किया है । अस्तु ।. . . . . ईन्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकारियों ने सर्वप्रथम इस संबंध में . जानकारी प्राप्त करना आरम्भ किया । एच. टी. कोलबुक ने (१७१५-१८३७) जैनधर्म के संबंध में कुछ विस्तृत जानकारी प्राप्त कर उसे अपने मौलिक ग्रंथ में प्रकाशित की । भारतीय विद्या के अनेक विषयों में सर्व प्रथम चंचुपात करने वाला यही विदेशी विद्वान है । कोलन क के दिये गये वर्णन को हॉरेस हेमन विल्सन ने विस्तृत कर पूर्ण किये। बहुत लम्बे समय तक इन .. दोनों विद्वानों के लेख ही जैन-धर्म के सम्बन्ध में यूरोप में प्रमाणभूत माने जाते रहे। जैन-ग्रन्थ का सर्व प्रथम अनुवाद करने का सन्मान संस्कृत . . डॉइच शब्दकोश के सम्पादक अंटो वोटलिंक को प्राप्त है। इन्होंने रियु के साथ मिलकर हेमचन्द्र के अभिधान चिन्तामणि का जर्मन अनुवाद ई. स. १८४७ में किया । ई. स. १८४८ में जे. स्टिवनसन ने कल्पसूत्र और नवतत्त्व .. . के अंग्रेजी भावान्तर किये। तत्पश्चात संस्कृत भाषा के प्राचार्य अलस्ट . . वेवर ने १५ में शत्रुजय माहात्म्य में से और. १८६६ में भगवती सूत्र. . से कुछ सुन्दर अंश संकलित करके अनूदित किये । इन बेवर. महोदय ने .... वेताम्बर जैनागमों और अन्य ग्रन्थों में कुछ गहन प्रवेश कर संशोधन का . पार्ग खोल दिया । इससे प्रेरित होकर हर्मन , जेकोबी, इ. लोइमान । sikokokakkarkele( १५०) kakakakakakakaki
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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