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________________ Se* जैन-गौरव-स्मृतियाँ * Ste तवालोक नामक सुदर ग्रन्थ लिखा है । कुन्दकुन्दाचार्य के समयसार आदि ग्रंथ उच्चकोटि के अध्यात्म के प्ररूपक है । संगीत, शिल्प, अष्टाग निमिन्त. आदि के विषय में भी जैनाचार्यों ने खूब लिखा है । मलधारी राजशेखर के शिष्य सुधाकलश ने संगीतपनिषद् और संगतिसार क्रमशः १३८० और १४०६ वि० सं० में लिखे। मण्डनमंत्री ने संगीतमण्डन ग्रन्थ लिखा। प्रतिष्ठा, स्थापत्य, मूर्तिनिर्माण आदि के विपय में सैंकड़ों कल्पग्रंथ विद्यमान हैं । विज्ञान के सम्बंध में जैनागमों में और द्रव्य निरूपक ग्रंथों में विपुल सामग्री भरी हुई है । ठक्कर फेरु ने द्रव्यसार आदि इस विषयक प्रथ भी लिखे हैं । जैनपदार्थ विज्ञान आधुनिक विज्ञान से अधिकांश मिलता हुआ है । उक्त विवरण से यह भली भांति सिद्ध हो जाता है कि जैन साहित्य केवल धार्मिक साहित्य ही नहीं अपितु सर्वाङ्ग सम्पन्न साहित्य है। भारतीय भाषाओं को जैनधर्म की देन प्रांतीय भाषाओं को भी जैनधर्म की महत्त्वपूर्ण देन है । अपभ्रंश . भापा ही सब प्रांतीय भाषाओं की जननी है । अपभ्रंश भाषा में सबसे । अधिक लिखने वाले और उसे साहित्य का रूप देने वाले. जैनाचार्य ही हैं। दक्षिणभारत की कन्नड, तामिल और तेलगू भाषाओं को साहित्य का रूप जैनाचार्यों ने ही दिया है । दिगम्बर जैनाचायों ने कन्नड भाषा में खूब साहित्य लिखा है । श्री बद्धदेव ( तुम्बुलूराचार्य ) ने कन्नड भाषा में तत्त्वार्थधिगम सत्र पर ६६००० श्लोकप्रमाण टीका लिखी है। हिन्दी और गुजराती साहित्य के आद्यप्रणेता जनाचार्य ही हैं। राजस्थानी में भी जैनाचार्यों ने कई ग्रंथों का निर्माण किया है। इस तरह भारतीय विभिन्न भापाओं में नैतिक, धार्मिक और औपदेशिक साहित्य का निर्माण करने का श्रेय जैन साधकों को विशेष रूप से प्राप्त है । हिन्दी भाव और भाषा की दृष्टि से अपभ्रश की पुत्री है । अपभ्रंश साहित्य जो कुछ भी आज उपलब्ध है वह जैनों की बहुत बड़ी देन है। शहलजी ने लिखा है-"अपभ्रश के कवियों का विस्मरण करना हमारे लिये हानि की वस्तु है । ये ही कवि हिन्दी काव्यधारा के प्रथम सष्टा थे । हमारे
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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