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________________ >*<>>>>★ जैन- गौरव स्मृतियां (१) काशी निवासी ख० स्वामी राममिश्राशास्त्री ने अपने व्याख्यान में कहा था : 35 " जैनधर्म उतना ही प्राचीन है जितना कि यह संसार है । (२) प्राचीन इतिहास के सुप्रसिद्ध आचार्य प्राच्य विद्या महार्णव नगेन्द्रनाथ वसुं ने अपने हिन्दी विश्व कोष के प्रथम भाग में ६४ वें पृष्ठ पर लिखा है: " रिषभदेव ने ही संभवतः लिपि विद्या के लिए लिपि कौशल का उद्भावन किया था। रिषभदेव ने ही संभवतः ब्रह्मविद्या शिक्षा की उपयोगी ब्राह्मी लिपि का प्रचार किया । हो न हो, इसलिए वह अष्टम अवतार बनाये जाकर परिचित हुए । ...... इसी विश्वकोष के तीसरे भाग में ४४३ वें पृष्ठ पर लिखा हैः- भागवतोक्त २२ अवतारों में रिषभ अष्टम हैं । इन्होंने भारतवर्षाधिपति नाभिराजा के औरस और मरुदेवी के गर्भ से जन्म ग्रहण किया था। भागवत में लिखा है कि जन्म लेते ही रिषभनाथ के अंगों में सब भगवान् के लक्षण झलकते थे । (३) श्रीमान् महामहोपाध्याय डा. सतीशचन्द्र विद्याभूषण, एम. ए. पी. एच., एफ. आई. आर. एस' सिद्धान्त महोदधि, प्रिंसिपल संस्कृत कालेज कलकत्ता ने अपने भाषण में कहा था: " जनमत तब से प्रचलित हुआ है जब से संसार में सृष्टि का प्रारम हुआ है । मुझे इसमें किसी प्रकार का उन्न नहीं है कि जनदर्शन वेदान्तादि दर्शनों से पूर्वका है " (४) लोकमान्य तिलक ने अपने 'केशरी' पत्र में १३ दिसम्बर १९०४ को लिखा है कि: "महावीर स्वामी जैनधर्म को पुनः प्रकाश में लाये । इस बात को - आज करीब २४०० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं । बौद्ध धर्म की स्थापना के पहले जैनधर्म फैल रहा था, यह बातें विश्वास करने योग्य हैं। चौबीस तीर्थकरों में महावीर स्वामी अन्तिम तीर्थंकर थे । इससे भी जैनधर्म की प्राचीनता जानी जाती है ।.. XxxoxoxoxoxoxoxoXOXOXOX (12) XXXXXXXXXXXX (७५)
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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