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________________ * जैनगौरव स्मृतियाँ शीलाङ्काचार्य - संवत् ६३३ में इन आचार्य ने आचारांग सूत्र पर तथा वाहरीगणि की सहायता से सूत्रकृताङ्ग पर संस्कृत में टीकाएँ रची। जीवसमास पर वृत्ति भी लिखी। शीलाचार्य ने दस हजार श्लोक प्रमाण प्राकृत गद्य में ५४ महापुरुषों के चरित्र लिखे हैं (चडपन्नमहापुरिस चरियं)। ये शीलाचार्य और शीलाङ्काचार्य एक ही हैं या अन्य है यह अनिश्चित है । इसी नाम के कई आचार्य हुए हैं। सिद्धर्पिसूरिः-- ये महान् जैनाचार्य हुए हैं। इन्होंने 'उपमितिभव प्रपञ्च कथा नामक' विशाल रूपक ग्रन्थ की रचाना की है। यह रूपक ग्रन्थ समस्त भारतीय ही नहीं अपितु संसार भर के रूपक ग्रन्थों में सर्वप्रथम ग्रन्थ हैं। इसका साहित्यिक महत्व बहुत अधिक है। जेकोत्री महोदय ने इसकी बहुत प्रशंसा लिखी है। इन सिद्धर्पि ने चन्द्रकेवलि चरित्र को प्राकृत से संस्कृत में परिवर्तित किया। न्यायावतार पर संस्कृत टीका लिखी। वि० सं० ६७४ में इन्होंने धर्मदास गणिकृत प्राकृत उपदेशमाला पर संस्कृत विवरण लिखा है। अनन्त वीर्य इन्होंने अकलंक के सिद्धिविनिश्चय ग्रन्थ की टीका लिख कर अनेक विद्वानों के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया है । माणिक्य नंदी:--- अकलंक के ग्रन्थों के अधार पर इन्होंने 'परीक्षामुख' नामक न्याय ग्रन्थ की रचना की है। इस पर प्रभाचंद्राचार्य ने 'प्रमेयकमलमारी नामक प्रौढ और विशाल टीका लिखी है। देवसेन-~ इन्होंने दर्शनसार, आराधनासार, तत्वसार, लघुनयम, बन्नयत्रा, आलाप पद्धति और भावसंग्रह ग्रन्थ लिखे हैं। कवि पम्प ने मादिपुराणा चम्, विक्रमार्जुन विजय तथा कवि पोन ने शांति पुराण अन्ध लिखा है।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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