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________________ देवर्धिगणि क्षमाश्रमण .. ये आचार्य विक्रम की छली शताब्दी में हुए हैं । इन्होंने आग को पुस्तकारूढ किये । वीर निर्वाण सं० ६८० (वि. सं. ५१० ) में इन अध्यक्षता में बलभीपुर में आगमों' का 'आलेखन हुआ था । इन्होंने नन्द सूत्र की रचना की। इनके सम्बन्ध में पहले लिखा जा चुका है। मल्लवादी: ये आचार्य सिद्धसेन के समकालीन थे। वादप्रवीण होने से इनका म मल्लवादी था । इन्होंने नयचक्र ( द्वादशार ) नामक अद्भुत दार्शनिक न्थ की रचना की । इनके इस ग्रन्थ का श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों म्पराओं में समान रूप से सन्मान है । 4 इस ग्रन्थ में सब बाद एक दूसरे की युक्तियों से खण्डित हो जाते यह बताकर आचार्य ने अनेकान्तवाद के द्वारा सब वादों की संगति की है। इस नयचक्र पर सिंहक्षमाश्रमण ने १८००० श्लोक प्रमाण मृत टीका लिखी है। ये सिंहक्षमाश्रमण सातवीं सदी के विद्वान माने - हैं । मल्लवादी ने सिद्धसेन दिवाकर के सन्मति तर्क की वृत्ति भी लिखी श्री हेमचन्द्राचार्य ने सिद्धहेम शब्दानुशासन में 'तार्किक शिरोमणी' के इनका उल्लेख किया है। प्रभावक चरित्र में उल्लेख किया गया है कि ने शीलादित्य राजा की सभा में बौद्धों को बाद में पराजित किया था । ग्रन्थ में इनका समय वीर निर्वाण सं० ८४ ( वि० सं० ४१४ ) गया है । वें महत्तरः इन आचार्य ने पंचसंग्रह नामक प्रसिद्ध कर्म विषयक ग्रन्थ की रचना था इसी ग्रन्थ पर ६००० श्लोक प्रमाण टीका रची हैं । इनका समय की शताब्दी है । क्षमाश्रमणः आचार्य ने वसुदेवहिण्डी नामक चरितग्रन्थ प्राकृत भाषा में 7 संघदास क्षमाश्रमण ने 'पंचकल्प महाभाष्य' नामक आगमिक ा है । ये प्रसिद्ध भाष्यकार हुए हैं । श्री धर्मसेन गणी इन ग्रन्थों के इनके सहयोगी रहे हैं । 1 ((४१०)
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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