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________________ जैन- गौरव स्मृतियाँ ★ साहित्य तो जैनाचार्यों के ग्रन्थों से ही समृद्ध हुआ है। राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि "अपभ्रंश साहित्य की रचना और सुरक्षा में जैनों ने सबसे अधिक काम किया है ।" जैनाचार्यों ने जैसे प्राकृत और अपभ्रंश में साहित्य की रचना की वैसे ही विद्वयोग्य संस्कृत भाषा में भी उन्होंने प्रकाण्ड पाण्डित्यपूर्ण ग्रन्थों की रचना की है । निष्पक्ष साहित्यवेत्ताओं का मन्तव्य है कि यदि उपलब्ध संस्कृत साहित्य में से जैन साहित्य का अलग करदिया जाय तो संस्कृत साहित्य नितान्त फीका हो जाता है । भारतीय संस्कृति व इतिहास के अध्ययन के लिए जैनसाहित्य का अध्ययन करना अत्यन्त आवश्यक है । इसके बिना भारतीय इतिहास और संस्कृति का सर्वाङ्ग और समुचित ज्ञान नहीं हो सकता | जैनसाहित्य इतिहास-संस्कृति और पुरातत्त्व सम्बन्धी विपुल सामग्री प्रदान करता है । इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से जैनग्रन्थों का बड़ा ही महत्त्व है । 2 जैन साहित्य, अति समृद्ध और विशाल हैं । उसका पूरा २ परिचय और इतिहास इस निबन्ध की छोटीसी परिधि में नहीं दिया जा सकता है । इस विषय के लिए तो एक स्वतंत्र ग्रन्थ की आवश्यकता है। यहाँ तो केवल अतिसंक्षेप में उसके मुख्य २ साहित्य और साहित्यकारों के विषय में उल्लेख किया जाता है । काल की दृष्टि से निम्न विभागों में विभक्तकर यह वर्णन किया जायगा : (१.) आगमकाल ( २ ) संस्कृत साहित्य का उदयकाल । ( ३ ) संस्कृत साहित्य का उत्कर्ष काल और भाषासाहित्य का उदय | ( ४ ) आधुनिककाल | १ यागमकाल जैनधर्म के आधार और प्रमाणभूत ग्रन्थ 'आगम' कहे जाते हैं। ब्राह्मणधर्म में वेदों का जो महत्त्व है वही जैनपरम्परा में आगमों का है। ब्राह्मण परम्परा अपने वेदों को अपौरुषेय मानती है। जैनधर्म ऐसा नहीं hhqhqnihsho: (३१२) Kes
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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