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________________ 柒 생생한 ><><★ जैन - गौरव - स्मृतियाँ कर CEF her हुमूल्य भेंट प्रदान की थी । तथा सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने (१३५१३८८ ) श्रीपाल चरित्र के कर्त्ता रत्नशेखर को बहुत सन्मान प्रदान केया था । सारांश यह है कि संवत् १६१३ से १७१३ तक की भारत की शान्ति की शताब्दी में अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के राज्यकाल में जैनधर्म की तिष्ठा बढ़ी। सबसे अधिक छाप सम्राट् अकबर पर पड़ी । वह जैनसिद्धान्तों में इतना रस लेता था कि लोग यह शंका करते थे कि सम्राट् गुप्तरूप से जैनधर्म का पालन करता है । अकबर के अहिंसा विषयक फरमान इस बात की पुष्टि करते है । अबुल फजल और बदाउनी के लेखों से भी यही ध्वनित 1. होता है । सं० १६३५ से लेकर १६६१ तक ( अकबर के मरणकाल तक ) जैन मुनियों का अकबर के साथ गाढ सम्पर्क रहा । भानुचन्द्र उपाध्याय अकबर के मरणकाल तक उसके दरबार में रहे थे । " हीरविजयसूरि, विजयसेनसूरि, भानुचन्द्र उपाध्याय, सिद्धचन्द्र 4 उपाध्याय और जिनचन्द्रसूरि जैसे महाप्रतिभासम्पन्न जैनमुनियों ने अपनी " प्रतिभा के बलपर मुगल बादशाहों को प्रभावित करके सचमुच जैनधर्म की की महती प्रभावना और सुरक्षा की है । जैनइतिहास में इनका नाम वर्णाक्षरों से सदैव के लिए अङ्कित रहेगा । G भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम के जैनवीर गुलाम भारत को आजाद बनाने में जैनसमाज, उसके अहिसा के उसूलों और स्वार्थ त्यागकर देशसेवा को अपनाने वाले जैनवीरों का स्थान भी विशेष गौरव पूर्ण रहा है। देशभक्ति की इस परम्परा को जयपुर में स्व० अर्जुनलालजी सेठी के "जैनवर्धमान विद्यालय" ने उस सुदूर भूत में ही ऐसा घनीभूत किया की क्रान्ति की वल्लरी को वहीं से अमरवेल बन कर दिल्ली के लार्ड हार्डिन्स बम काड से लेकर अजमेर के डोंगरा-शूटिंग-काण्ड तक परिव्यप्ता होते देखा गया । स्व० चन्द्रशेखर आजाद के हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र दल ने देश के प्रथम कोटि के जैन राजनीतिज्ञ पं० अर्जुनलालजी सेठी की वृद्धावस्था तक उनका प्रश्रय पाया था । सेठीजी राजस्थान में राजनैतिक DXNXXNOXXXNXX(३५)OOOOONIX
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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