SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SS* जैननगौरवं स्मृतियाँ eased वाली पहाड़ी पर किलेनुमा आदिनाथ जी का भव्य मन्दिर बनवाया। जैन . मुनियों और यतियों पर उनकी गहरी श्रद्धा थी। उन्होंने अपने मन्त्रित्व काल में राणाजी से यतियों की सहायता के लिए एक फरमान भी जारी किया था। जिसमें निम्न बातें थीं : (१) प्राचीनकाल से जैनियों के मन्दिरों और स्थानों को अधिकार मिला हुआ है कि उनकी सीमा में जीववध न हो। उनके हक्क की सीमा में कोई भी जीववध न करे। (२)जो जीव वध के लिए इनके स्थान के पास से ले जाया जायगा वह अमर हो जायगा। (३) जो जैनियों के उपाश्रय में शरण ग्रहण कर लेगा वह चाहे राजद्रोही. लुटेर और कारागृह से भागा हुआ अपराधी ही क्यों न हो, उसे राजकर्मचारी नहीं पकड़ सकेंगे। (४) फसल में फँची (मुठ्ठी), कराना की गुट्ठी, दान की हुई भूमि, धरती और अनेक नगरों में उनके बनाये हुए उपाश्रय कायम रहेंगे। (५) यतिमान को १५ बीघे धान की भूमि के और २५ बींधै मालेटी के दान कियेगये हैं। नीमच और निम्बाहेड़ा के प्रत्येक परगने में हरएक यति को इतनी ही पृथ्वी दी गई है। . ... . . इस फरमान को देखते ही पृथ्वी नाप दी जाय और देदी जाय और कोई मनुष्य यतियों को दुःख नहीं दे। उस मनुष्य को धिक्कार है जो उनके हकों को उल्लंघन करता है। हिन्दु को गौ और मुसलमान को सुअर और खुदा की कसम है । संवत् १७४६ महासुदी ५ ई० सन् १६६३ ! शाह दयाल मंत्री। इस प्रकार दयालदास मेवाड़ के इतिहास में एक पराक्रमी योद्धा. और कुशल राजनीतिज्ञ हो गये हैं। मेवाड़ में इनका गौरवशील चरित्र सदा स्मरणीय रहेगा।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy