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________________ * जैन-गौरव-स्मृितयाँ * S e . अपने दूत बादशाह ऑगस्टस के पास भेजे थे। उनके साथ पाण्ड्यवंशः- एक जैन श्रमण भी यूनान गये थे । इस उल्लेख से तत्का लीन राजा का जैन और प्रभावशाली होना प्रकट है । पांड्य राजाओं की राजधानी मदुरा जैनियों का केन्द्र बन चुकी थी । तामिल ग्रन्थ नालिदियर के सम्बन्ध में यह कहाजाता है कि उत्तर भारत में दुष्काल पड़ने पर आठ हजार जैनसाधु पांड्य देश में आये थे। जब वे वापस जाने लगे तो पांड्य नरेश ने उन्हें वहीं रखना चाहा । फिर किसी समय उन्होंने पांड्य नरेश की राजधानी को छोड़ दिया। चलते समय प्रत्येक साधु ने एकएकताडपत्र पर एकएक पद्य लिख दिया। इन पद्यों के समुदाय से यह 'नालिदियर' ग्रन्थ बना । तामिल सहित्य में 'कुरल' नामक नीति ग्रन्थ सबसे बढ़कर समझा जाता है । यह तामिल वेद कहलाता है। यह अहिंसा सिद्धान्त के आधार पर बनाया गया है । इसके रचयिता कुन्दकुन्दाचार्य हैं। तामिल विद्वान् प्रो० ए० चक्रवर्ती का कहना है कि "तामिल भापा के नैतिक साहित्य में जैनाचार्यों का प्रभाव विशेष रीति से द्योतित होता है । 'कुरल' और 'नालिदियर' नामक दोनों महाग्रन्थ उन जैनाचार्यों की कृति हैं जो तामिल में बस गए थे।" चतुर्थ पांड्यराज उग्रपेरूवलूटी (सन् १२८ से १४० ) के राजदरवार में कुरल ग्रन्थ पढ़ा गया था । ईसा की पांचवीं शताब्दी तक पांड्यवंश के राजाओं के द्वारा जैनधर्म की उन्नति होती रही। परन्तु छठी और सातवीं शताब्दी में शैवों और वैष्णवों की वृद्धि से जैनधर्म को भारी धक्का लगा । पल्लव देश के महेन्द्रवर्मा नामक जैननरेश ने शैवधर्म स्वीकार कर लिया. और सुन्दरपांड्य ने अपने धर्म परिवर्तन के साथ आठ हजार जैनों का वध कर डाला। इसके बाद १२५० में बारकुर नगर के जैनराजा भूत । इसके बाद अन्य राजा भी जैन हुए जिनमें वीरपांड्य प्रसिई १४३१ . देव की विशालकाय मूर्ति कारकल में स्थ पल्लव वा . काचीपर जैनों का केन्द्र के राजा चन्द्राचा ". जब .. A . .. पल्लवं वंशः । ... ... . ' (३५० RE:
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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