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________________ * जैन गौरव-स्मृतियाँ* See कुमारपाल एक आदर्श जैन नृपति था। इसका जन्म विक्रम संवत् ११४६ में हुआ था। चौलुक्य वंश के राजा भीमदेव के एक पुत्र क्षेमराज, तत्पुत्र देवप्रसाद, तत्पुत्र त्रिभुवनपाल और तत्पुत्र परमाईत नरेश कुमार कुमारपाल हुआ । सिद्धराज जयसिंह के न चाहने पर भी भाग्य और पुण्य की प्रबलता तथा आचार्य हेमचन्द्र और मंत्री उदयन * की सहायता से सब विघ्न-बाधाओं को पार कर वि. सं० ११७७ में यह राजासिंहासन पर आरूढ़ हुआ । राज्याभिषिक्त होने के पश्चात् दस वर्ष तक राज्य की सुव्यवस्था करने, उसकी सीमा बढ़ाने और दिग्विजय कर बड़े २ राजाओं को अपने आज्ञानुवर्ती बनाने में यह लगा रहा । वह अपने समय का अद्वितीय विजेता और वीरराजा था। उसने अपने राज्य का खूव विस्तार कर लिया था। श्री हेमचन्द्राचार्य ने महावीर चरित में बताया है कि उसकी आज्ञा का पालन उत्तर दिशा में तुर्किस्तान, पूर्व में गंगानदी, दक्षिण में विन्ध्याचल और पश्चिम में समुद्र पर्यन्त के देशों में होता था। कनल टॉड साहब को चित्तौड़ के किल्ले में राणा लखरणसिंह के मन्दिर में संवत् १२०७ का एक शिलालेख मिला था जिसमें कुमारपाल के लिए लिखा था कि "महाराजा कुमारपाल ने अपने प्रवल पराक्रम से सत्र शत्रुओं का दलन करदिया। उसकी आज्ञा को सब देशों ने मस्तक पर चढ़ाई । उसने शाकंभरी ( सॉभर ) के राजा को अपने चरणों में मुकाया था । उसने खुद शस्त्र धारण कर सवालक्ष (देश) पर्यन्त चढ़ाई कर सब सरदारों को अपने वश में किया था। सालपुर (पंजाब) तक को उसने अपने अधीन किया था। उसके सैन्य ने कोकण के सिल्हार वंश के राजा मल्लिकार्जुन को भी जीता था । उक्त सत्र प्रमाणों से यह ज्ञात होता है कि कुमारपाल का राज्य कितना विस्तृत भा । भारतवर्ष में इतने बड़े सामाज्य पर शासन करने वाले राजा बहुत कम ही हुए हैं। कुमारपाल पहले तो शवधर्मानुयायी था परन्तु याचार्य हेमचन्द्र के. प्रभाव से जैनधर्म के प्रति उसकी श्रद्धा उत्तरोनर बढ़ती जाती थी । अन्ततः दयन- मलतः मारवान्ट निकाली भीमान्न गोत्रीय वन में।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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