SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माटर जैन-गौरव-स्मृतियां Sis " ।। है कि जैनधर्म की उत्पत्ति न तो महावीर के समय में और न पार्श्वनाथ के समय में हुई किंतु इससे भी बहुत पहले भारत वर्ष के अति प्राचीन काल में यह अपनी हस्ती होने का दावा रखता है। . जैनधर्म बौद्धधर्म की शाखा नहीं है, बल्कि एक स्वतन्त्र धर्म है। इस बात को सिद्ध करने के लिए अध्यापक जेकोबी ने बौध्दों के धर्मग्रन्थों में जैनों का और उनके सिध्दांतों का जो उल्लेख पाया जाता है उसका दिग्दर्शन कराया है और बड़ी योग्यता के साथ यह सिद्ध कर दिया है कि जैनधर्म बौद्धधर्म से प्राचीन है। अब यहाँ यह दिग्दर्शन करा देना उचित है कि बौद्धों के धर्मशास्त्रों में कहाँ २ जैनों का उल्लेख पाया जाता है : ... ... ... ' (१) मझिमनिकाय में लिखा है कि महावीर के उपाली नामक अवक ने ... . बुद्धदेव के साथ शास्त्रार्थ किया था। (२) महावग्ग के छठे अध्याय में लिखा है कि सीह नामक श्रावक ने जो - कि महावीर का शिष्य था, बुध्ददेव के साथ भेंट की थी। (३) अंगुतर निकाय के तृतीय अध्याय के ७४ वें सूत्र में वैशाली के एक विद्वान् राजकुमार अभय ने निर्गन्थ अथवा जैनों के कर्म सिध्दांत का . वर्णन किया है। (४) अगुतर निकाय में जैनश्रावकों का उल्लेख पाया जाता है और उनके धार्मिक आधार का भी विस्तृत वर्णन मिलता है। .... (५) समन्नफल सूत्र में बौद्धों ने एक भूल की है । उहोने लिखा है कि महावीर ने जैनधर्म के चार महानतों का प्रतिपादन किया किन्तु ये चार महाव्रत महावीर से २५० वर्ष पूर्व पार्श्वनाथ के समय माने जाते. थे। यह भूल बड़े महत्त्व की है क्योंकि इससे जौनियों के उत्तराध्ययन सूत्र के तेवीसवें (२३) अध्ययन की यह बात सिध्द हो जाती है कि तेवीसवें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के अनुयायी महावीर के समय में विद्यमान थे। (६) बौद्धों ने अपने सूत्रों में कई जगह जैनों को अपना प्रतिस्पर्धी माना है किंतु कहीं भी जैनधर्म को बौद्धधर्म की शाखा या नवस्थापित नहीं लिखा।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy