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________________ = जैन गौरवःस्मृतियां यशोवर्मा ने राजकीय खटपट के कारण उसको ( आम को ) कन्नौज के राजा और उसकी माता को देश निकाला दे दिया था। बप्पभट्ट श्राम ने उसे भविष्यवाणी की थी तू राजा होगा । इससे जब वह राजा हुआ तो उसने बप्पभट्ट का बहुत सन्मान किया और जैनधर्म स्वीकार किया । बप्पभट्ट ने लक्षमणावती के राजा धर्म के दरबारी कवि वाक्पति को जिसने 'गरुड़ बहो' नामक प्रख्यात प्राकृत काव्य लिखा जैन धर्मानुयायी बनाया था। जैन सुविख्यात राजा मुञ्ज और भोज भी धारा नगरी में सब धर्मों ___ मुंज-भोज के प्रति सहिष्णुता रखते हुए शासन करते थे। कथाओं के अनुसार ये भी जैनधर्म का पालन करने वाले भूपति कहे जाते हैं। .... इस प्रकार संयुक्तप्रांत, काश्मीर, पंजाब, आदि उत्तर भारत में और मध्यभारत में जैनधर्म का प्रचार हुआ। राजपूताना और मध्य भारत के संस्कारी जीवन पर जैनधर्म की बहुत गहरी छाप पड़ी है। जैन गृहस्थों के व्यापारी, धनिक और आचार-विचार सम्पन्न होने के कारण उनकी नगरी में और राज दरबार में अच्छी प्रतिष्ठा जमी रही है। अनेक जैनधर्मानुयायी गृहस्थों ने राज्य-शासन में बहुत ही महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है । राजस्थान में जैनधर्म का अत्यन्त गौरव पूर्ण स्थान है अतः उसका स्वतन्त्ररूप से आगे उल्लेख किया जायगा। गुजरात के जैनराजा और जैनधर्म जैनधर्म का सौराष्ट्र और गुर्जरभूमि के साथ अति प्राचीनकाल का सम्बन्ध है भगवान् अरिष्टनेमि ने इस भूमि में तपश्चर्या करके निर्वाण प्राप्त किया । इस भूमि में आये हुए गिरनार और शत्रुञ्जय गुजरात के जैन राजा पर्वत पर से संख्यातीत आत्माओं ने निर्वाण प्राप्त किया और जैनधर्म इस प्रकार इतिहासकाल के प्रारम्भ होने के पहले से ही जैनधर्म का सौराष्ट्र के साथ सम्बन्ध सिद्ध होता है । इतने प्राचीनकाल की विचारणा छोड़ कर ईसा की पाँचवी शताब्दी के बाद होने वाले मुख्य २.राजाओं का ही यहाँ उल्लेख किया जाएगा। ....
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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