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________________ Ta * जैन-गौरव-स्मृतियां इसी तरह उन्होंने इस इतिहास के पृष्ठ १०-११ में यह भी लिखा है: "अजमेर जिले के बी नामक ग्राम में वीरसंवत् ८४ (वि. सं पूर्व ३८६ = ई. सं पूर्व ४५३ ) का एक शिलालेख मिला है (जो अजमेर के म्युजियम में सुरक्षित है ) उस पर से अनुमान होता है कि अशोक के पहले भी राजपूताने में जैनधर्म का प्रसार था। जैन लेखकों का मत है कि राजा सम्प्रति ने जो अशोक का वंशज था, जैनधर्म की बहुत उन्नति की और इसके आसपास के प्रदेशों में कितने ही जैनमन्दिर बनाये।" इस प्रकार समाद् विम्बिसार ( श्रेणिक ) से लेकर सम्प्रति तक मगध सामाज्य में जैनधर्म की प्रधानता रही। मौर्यकाल के अन्त समय तक मगध में जैनधर्म का प्रभुत्व रहा। चीनयात्री ह्वेनसाँग ( Hiuen Triag) ने ईस्वी सन् छह सौ उनतीस (६२६ ) में भी वैशाली, राजगृह . नालन्दा और पुण्ड्रवर्धन में अनेक निम्रन्थों को देखने का उल्लेख किया है। इस प्रकार एक लम्बे समयतक मगधप्रदेश में जैनधर्म का प्रभुत्व बना रहा। . . ... • उड़ीसा प्रान्त में अत्यन्त प्राचीनकाल से जैनधर्म का प्रचार था । श्रीयुत जायसवाल महोदय ने लिखा है कि "मगधराज नन्दिवर्धन कलिंग से ऋषभदेव की जैनमूर्ति मगध ले आया था। इस पर कलिङ्ग सम्राट खाखेल से यह मालूम होता है कि ई. सं. पूर्व ४५८ वर्ष में और विक्रम सं. पूर्व ४०० में उड़ीसा में जैनधर्म का इतना प्रचार था कि भगवान महावीर के निर्वाण के ७५ वर्ष वाद ही वहाँ जैनमूर्तियाँ.. प्रचलित हो गई थीं। ......... खारवेल के समय से पूर्व भी खण्डगिरि ( उदयगिरि ) पर्वत पर अर्हन्तों के मन्दिर थे क्योंकि उनका उल्लेख खारवेल के लेख में आया है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैनधर्म कुछ शताढ़ियों तक उड़ीसा का राष्ट्रीयधर्म रहा है।" यह उड़ीसा प्रान्त ही कलिंग देश है। कलिंग पर चेदिवंश के राजाओं का शासन था। इनमें महाराजा महामेघ वाहन खारवेल सबसे अधिक प्रभावशाली हुए। ये अपने अतुल्य पराक्रम के कारण 'कलिङ्ग चक्रवर्ती के रूप में सुविख्यात हुए।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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