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________________ sh e et जैन-गौरव-स्मृतियाँ ** :: नन्दराजाओं के राज्यकाल में भी जैनधर्म फला-फूला। अन्तिम नन्दराज' से मौर्यवंश के सम्राट चन्द्रगुप्त ने राज्य छीनलिया । समाट चन्द्रगुप्त 6. और इनके मंत्री चाणक्य भी जैन थे। .. ...नन्दवंश के बाद मगधसाम्राज्य के अधिकारी मौर्यवंशी राजा हुए। प्रथम मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त भारतीय इतिहास के सबसे अधिक प्रसिद्ध ___ महाराजाधिराज हैं। इन्होंने अपने बाहुबल से पेशावर से ‘चन्द्रगुप्त मौर्य कलकत्ता और सुदूर दक्षिण की सीमा तक अपना - राज्य फैलालिया था । इन्होंने सिकन्दर के पीछे रहे हुए प्रान्तीय यूनानी शासक को हिन्दुस्तान के सीमाप्रान्त से दूर भगाया था। जब पुनः सिल्यूकस ने भारत पर आक्रमण किया तो चन्द्रगुप्त ने उसे बुरी तरह हराया और सन्धि करने पर बाध्य किया। इस सन्धि के अनुसार चन्द्रगुप्त का राज्य अफगानिस्तान तक बढ़गया और सिल्यूकस की पुत्री से उनका विवाह भी होगया। भारत और यूनान का गहरा सम्बन्ध भी इनके राज्य में स्थापित हुआ । चन्द्रगुप्त जैसे सम्राट ने भारतीय स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाये रक्खा । यह महान् प्रतापीसम्राट प्रख्यात श्रुतकेवली जैनाचार्य श्री भद्रबाहु का शिष्य था। इसके मंत्री चाणक्य भी जैनधर्मानुयायी आवक “गनी" का पुत्री था । "गनी" जैनधर्म का कट्टर अनुयायी योद्धा था। चाणक्य की सहायता से सम्राट चन्द्रगुप्त अपने प्रयत्नों में सफल हो सके। यह महान् प्रातापी सम्राट जैनधर्म का ऊपर-ऊपर से ही पालन करने वाला नहीं था बल्कि जैनधर्म के अहिंसा और त्याग के सिद्धान्त भी इसकी रंग-रग में उतरे हुए थे। इसीलिए अपने पराक्रम से उपार्जित विशाल साम्राज्य का परित्याग करके वे निर्गन्य जैन-मुनी बन गये। त्याग का कितना भव्य उदाहरण! उत्तरीभारत में इस समय बारहवर्षी भयंकर दुष्काल पड़ा । श्रमल निन्थों को यथाविधि आहार मिलने में कठिनाई होने लगी । इसलिए श्रीभद्रबाहु खामी के नेतृत्व में एक विशाल साधुसंघ ने दक्षिण-भारत की: ओर प्रयाण किया । उसरी भारत: में जो साधु-समुदाय रहा उसके नायक . जमाफ दी विहार एएर मोरिमा रिस सोसारी भा. १३ १.२४५
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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