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________________ H e जैन-गौरव स्मृतियों इतिहास पर निष्पक्ष और शुद्ध प्रामाणिक शैली से अनुशीलन करने से यह रतीत हुए बिना नहीं रहेगा कि जैनजाति के नरवीरों ने भारतीय राजनीति और इतिहास को अपने बुद्धि-कौशल, रण चातुर्य, आत्मत्याग और बलिदानों के द्वारा अनुप्राणित किया है। __. जैनश्रावक आध्यात्मिक आराधना करता हुश्रा..जहाँ छोटे से छोटे गणी की रक्षा और अहिंसा का ध्यान रखता है वहाँ वह अपना कर्तव्य और यित्व निभाने के लिये तलवार धारण कर रणसंग्राम में वीर सेनानी की तरह जूझ भी सकता है। वह अपने कर्तव्य और राष्ट्र की पुकार पर सर्वस्व अर्पण कर सकता है । वह आत्म-बलिदान और कुर्बानियों के द्वारा . अपने देश के गौरव को सुरक्षित रख सकता है । जैनवीरों ने अपने कार्यों के मारा यह सिद्ध करके बता दिया है। मगध के जैननरेश विम्बिसार ( श्रोणिक) . पादि यदि सुदृढ़ विशाल साम्राज्य का संगठन कर भारत की शक्ति को प्रवन न . नाते तो महान् विजेता सिकन्दर को भारत-भूमि में पद-प्रसार करते हुए कौन रोक सकता था ? स्वाधीनता के अमरपुजारी वीरशिरोमणि महाराणा ताप को यदि भामाशाह. जैसे स्वामीभक्त, देशभक्त जैनमंत्री का सहयोग । प्राप्त होता तो मेवाड़ का, राजस्थान का और भारतवर्ष का गौरव कौन नाने, सुरक्षित रह सकता या नहीं ? यदि कुमारपाल. और आचार्य हेमचन्द्र से जैन न होते तो गुजरात की गरिमा ऐसी हो सकती या नहीं, यह संशयापद हो जाता. क्या पूर्व, क्या पश्चिम, क्या उत्तर और क्या दक्षिण भारत . सब प्रदेशों में फैली हुई इस जाति ने स्थानीय, प्रादेशिक और राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भाग लिया है। बिहार, उड़ीसा; बंगाल उत्तर प्रदेश, पंजाब राजस्थान, मालवा, मध्यप्रदेश, गुजरात तथा दक्षिणी भारत में नजाति ने सफल राजनीति का संचालन किया था। इन समस्त प्रदेशों का तिहास जैनों की गौरव-गाथा को प्रकट करता है। . . . जैनधर्म कई शताब्दियों तक कतिपय राज्यों का राष्ट्रीय धर्म रहा है। गिध का साम्राज्य जैन नरेशों के अधीन कई शताब्दियों तक रहा। महाराजा पिक ( विम्बिसार ), अजातशत्रुः (कोणिक), नन्दिवर्धन, चन्द्रगुप्त, पेन्दुसार, अशोक, सम्पति आदि जैन नरेशों ने मगध पर शासन किया . Nikkeishesis; ins k
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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