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________________ S e * जैन-गौरव-स्मृतियां ★SS 業未中差. 素太深老孝亲秦秦秦杂秦案 जाय तो असंगत न रहेगा । यहाँ ऐसे बड़े.२ जाति समूहों का ही उल्लेख किया जाता है। जैनधर्मानुयायी जातियों में मुख्य रूप से ओसवाल, पोरवाल, खंडेलवाल अग्रवाल, पल्लीवाल; श्रीमाल, जायसवाल, बघेरवाल, हूमड़, नरसिंहपुरा आदि मुख्य हैं। इन सब जातियों की उत्पत्ति के इतिहास पर यदि ध्यानपूर्वक - विचारा जाय तो यह स्पष्ट हुए बिना नहीं रहता कि ये सब जातियाँ "महा. जन" शब्द की पर्यायवाची हैं । आज भी मोटे रूप में इन जाति वालों. को 'महाजन' ही कहा जाता है । सन् १९५१ में होने वाली जनगणना में इन जातियों को 'महाजन जाति' में ही समावेशित माना है। .... इन जातियों की उत्पत्ति का वास्तविक इतिहास क्या है इस सम्बन्ध में प्रामाणिक रूप से तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि प्रामाणिक प्रमाणों का अभाव है। फिर भी पुरातत्ववेत्ताओं की शोध खोज से जो कुछ सामग्री प्रकाश में आई है वह में विश्वसनीय है। . . . ओसवाल जाति की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो मान्यता प्रसिद्ध है हमारी राय में वह न केवल इस जाति की ही उत्पत्ति का कारण नहीं है बल्कि उसका मूल नाम 'महाजन संघ' हैं। भारतीय इतिहास में एक समय ऐसा आया जब धर्म कलह तथा प्रतिस्पर्धा (होड़ा होड़ी ) का कारण बनरहा था । ऐसे समय विक्रम संवत से करीव ४०० वर्ष पूर्व वीर संवत् ७० में भगवान् पार्श्वनाथ के ७ वे पट्टधर जैनाचार्य श्रीमद् प्राभसूरीश्वरजी में समस्त विश्व को जैनधर्मानुयायी बनाने की । महात्वाकांक्षा का प्रदुर्भाव हुआ हो यह संभव है। इस सम्बन्ध में प्राप्त कथानक यह है कि जैनधर्म का प्रचार करते हुए आचार्य श्री अपने ५०० शिष्यों सहित अावू पहाड़ से होते हुए उपकेश प्रदेश में पधारे । इस क्षेत्र में उन्हें शुद्ध भिक्षा प्राप्त करने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। , kikikokkkkkk (३०४) kkkkkkkkkk
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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