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________________ * जैन गौरव-स्मृतियाँ अहिंसा की भूमिका तय्यार करने में तो जैन साधुओं का ही मुख्य रूप से प्रयत्न रहा है। यदि जैन परम्परा के द्वारा तय्यार किया हुआ अहिंसा . का वातावरण महात्मा जी को नहीं मिला होता तो उनका अहिंसा का प्रयोग शुरू होता या नहीं होता, वह इतना सफल होता या न होता, यह विचारणीय प्रश्न है। सप्त व्यसन के त्याग कराने का कार्य अविच्छित्र रूप से साधुसंस्था करती आ रही है। इसका असर हिंसक प्रकृति वाले वाह्य अगन्तुक मुसलमानों पर भी हुआ । इस विषय में हीरविजयसूरी, जिनचन्द्र, भानुचन्द्र आदि मुनियों के उपदेश के फल स्वरूप अकबर, जहाँगीर आदि बादशाहों के जीव- . हिंसा निषेधक फरमान ही प्रमाण हैं । ... जैन साधु केवल अपने मर्यादित क्षेत्र में ही नहीं विचरण करते थे अपितु वे चारों तरफ पहुंचे हैं। कोई कोई महा प्रतिभासम्पन्न मुनि राजसभाओं में पहुंचे हैं और राजाओं और नरेशों को अपने चारित्र और ज्ञान के बल से प्रभावित किया है। मंत्री, सेनाधिपति और राजवर्गीय लोगों के वीच पहुंच कर उन्होंने अपना संदेश सुनाया है। इसी तरह निम्न से निग्नकोटि में गिने जाने वाले व्यक्तियों को भी उन्होंने धर्म और कर्त्तव्य का बोधपाठ दिया है । सम्राट् और राजा महाराजाओं के महलों से लेकर गरीबों की झोपड़ियों तक उन्होंने ने अपना उपदेश-प्रवाह प्रवाहित किया था। इस तरह जैन श्रमण वर्ग ने जनता के नैतिक और व्यावहारिक जीवन स्तर को ऊँचा उठाने में कोई प्रयत्न अधूरा न छोड़ा । उन्होंने, घूम घूम कर ज्ञान का प्रकाश फैजाया है ओर कर्तव्य का भान कराया है। इस तरह जैन श्रमणों ने आध्यात्मिकत के साथ ही साथ सामाजिक सुख-शान्ति के विकास में महत्वपूर्ण सक्रिय भाग अदा किया है । जैन संघ का यह सामाजिक महत्व है। चतुर्विध संघ के मुख्य नायक श्रमण हैं । इनका कार्य अपने आध्यात्मिक अभ्युदय के साथ २ दूसरों को धर्ममार्ग बतलाना, संघ के हित . के लिए प्रवृत्ति करना, श्रावक वर्ग को धर्म जागृति की प्रेरणा देना आदि २ है । ये गुरुपद आसीन होते हैं । श्रावक वर्ग का कार्य अपने मर्यादित व्रतों का पालन करना, धर्मशासन के अभ्युदय के विविध प्रवृत्तियाँ करना, -- त्यागीवर्ग को संयम-निर्वाह में सहायता देना, उनके संयम की देखरेख
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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