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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ , घोषित कर दिया है कि यदि शान्ति का कोई मार्ग है तो वह अहिंसा ही है।) युद्ध की विभीषिकाओं से मानवसमाज: थर्रा उठा है। आजके विचारकों ने इस स्थिति में अहिंसा की महती उपयोगिता को स्वीकार किया है। कुछ भी हो-अहिंसा, जैनधर्म की अमर देन है। . . . ... ... ... ..... जैनधर्म के इस महान् सिद्धान्त पर कतिपय लोग यह आक्षेप लगाते हैं कि जैनियों की अहिंसा ने भारत को कायर और पुरुषार्थहीन बना दिया। जिसके कारण उसे (भारत को) पराधीनता भोगनी पड़ी। यह आक्षेप सर्वथा निर्मूल और सरासर सत्य की हत्या करने वाला है । जैनधर्म की अहिंसां ने भारत को कायर या परतंत्र नहीं बनाया अपितु उसने कायरता और परोधीनता से उसे मुक्ति दिलाई है । इतिहास इस बात की साक्षी दे रहा है। भारत में जब तक अहिंसाधर्म का प्राबल्य रहा तब तक सर्वत्र अमनः । चैन और सुख-शान्ति रही। भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल, चन्द्रगुप्त और अशोक जैसे अहिंसा प्रेमी शासकों का समय ही तो कहा जाता है। भारत की पराधीनता का कारण राजाओं की पारस्परिक अनेकता (फूट) और विलास-प्रियता है न कि जैन-अहिंसा । जो लोग अहिंसा पर यह बिना सिर-पैर का आक्षेप करते हैं वे इतिहास से अनभिज्ञता प्रकट करते हैं और सत्य के " साथ खिलवाड़ करते हैं। . . . . . . . . . . . . . . स्व० महात्मा गांधी ने अहिंसा की शक्ति के बल पर भारत को सदियो.. से खोई हुई स्वतंत्रता प्रदान कराई, इस प्रत्यक्ष सत्य से. कौन आँखमिचौनी कर सकता है ? अहिंसा के इस प्रत्यक्ष चमत्कार के बाद भी भला कौन ऐसा . होगा जो अहिंसा की शक्ति में विश्वास न करें । अतः इस प्रकार अहिंसा के .. सिद्धांत पर आक्षेप करने वालों को महात्मा गांधी ने महान चुनौती दी है। लाला लाजपतराय जैसे व्यक्तियों को भी अहिंसा के विषय में गलतफहमी हो गई थी, जिसका महात्मा गांधी ने सुन्दर ढंग से निराकरण किया था। आज के गांधीवाद के युग में अहिंसा की शक्ति का सब को अनुभव होने लगा है। संब यही मानते हैं कि अहिंसा के द्वारा ही दुनिया में शांति की स्थापना हो सकती है। अतः अब इस विषय पर अधिक लिखना अनावश्यक ही है। कई लोग जैन-अहिंसा पर यह आक्षेप करते हैं कि यह अव्यवहार्य लागई थी, जिवाद के युग म अहिंसा के हाधिक लिखना यह . . " . . . YAVARAAVAVITY ARKKARNEDRIARIA SANT
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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