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________________ * जैन-गौरव-स्मृतियाँ eS . . जैन-इतिहास सम्बन्धी भ्रमणा के बाद जो महत्वपूर्ण भ्रान्ति फैली हुई है वह है जैनियों को या जैनधर्म को 'नास्तिक' समझना । अब इसपर थोड़ा सा दृष्टिपात कर लें। - जैनधर्म पूर्णतया आस्तिक है, उसे नास्तिक कहना 'सूय में कालिमा बताना है । आस्तिक और नास्तिक की परिभाषा पर विचार करने से यह ज्ञात. . . हो जाएगा कि जैनधर्म आस्तिक है या नास्तिक है । प्रसिद्ध आस्तिक-नास्तिक वैयाकरण पाणिनि के "अस्ति नास्ति दिष्ट मतिः।४।४।६०" विचार इस सूत्र का अर्थ करते हुए भट्टोजी दीक्षित ने सिद्धान्त .: . . .. : : कौमुदी में लिखा है "अस्ति परलोकः इत्येवं मतिर्यस्य स आस्तिकः, नास्तीति मतिर्यस्य स नास्तिकः' अर्थात् जो परलोक को मानता है वह अस्तिक है और जो परलोक को नहीं मानता है वह नास्तिक है। इस परिभाषा के अनुसार जैनधर्म आस्तिक धर्म है क्योंकि वह परलोक को मानता है, पुनर्जन्म को मानता है, पाप-पुण्य को मानता है, स्वर्ग-नरक-मोक्ष में विश्वास रखता हैं, ईश्वर का अस्तित्व मानता है। इतना होते हुए भी जैनधर्म को नास्तिक-धर्म कहना मताग्रह का दुष्परिणाम है या निरी अज्ञानता है। ... ..जैनधर्म ने ब्राह्मणधर्म के यज्ञ-यागों में होने वाली हिंसा का तीव्र विरोध किया और ये हिंसक यज्ञादि जिस आधार शिला-पर खड़े थे उन वेदों के प्रामाण्य को भी मानने से इन्कार किया। जैनधर्म का यह क्रांतिमूलक कदम ठोस तर्क और प्रमाण पर प्रतिष्ठित था अतः वेदधर्मानुयायियों ने. इसकी युक्तियों का खण्डन करने के बजाय 'नास्तिको वेदनिन्दकः, कह कर उसका प्रभाव कम करना चाहा । जो वेद की निन्दा करने वाला है वह नास्तिक है, यह नास्तिकता की परिभाषा ठीक नहीं कही जा सकती हैं। किसीधर्म-विशेष के ग्रन्थ को न मानने से ही यदि नास्तिक कहा जाय तो सब नास्तिक ही ठहरेंगे । जैन भी कह सकते हैं कि जो जैनशास्त्रों को न माने वह नास्तिक है। अतः "नास्तिको वेदनिन्दकः" इसको कोई भी वुद्धिसान और निष्पक्ष व्यक्ति नहीं मान सकता है । . . ... ... . . . . . . ... ... ... :: कई लोग यह कहते हैं कि जैनधर्म ईश्वर को नहीं मानता है। यह सरासर मिथ्या है । जैनधर्म परमात्मा के वास्तविक स्वरूप को स्वीकार करता
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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