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________________ »<><><★ fama œful ★><><>< --- अभी तक नहीं लग सका है। हावार्ड ने तो इस विषय में लिखा है। Gravitation is an absolute mystery. We cannot get any explanation of its nature 4 इस प्रकार अधर्म द्रव्य के प्रायः सब गुण आइन्स्टाइन के इस नवीन आकर्षण शक्ति ( Fhe of grav tat on ) में पाये जाते हैं । फिर भी वैज्ञानिक इसे स्वतन्त्र रूप में Reaeity ) स्वीकार नहीं करते । वे उसकी श्रावश्यकता अवश्य अनुभव कर रहे हैं और वर्त्तमान में वे इसे सहायक के रूप में 'अधर्मद्रव्य' की तरह स्थिति में कारण मानते हैं । Ether और Field के स्वरूप में कार्य का भेद है, बाकी सब गुण समान हैं । इस लिए Ether से धर्मद्रव्य का ग्रहण होता है उसी प्रकार अधर्म द्रव्य का भी Field से ग्रहण होना ही चाहिए ( substitute for अधर्म ) । "द्रव्व परिवहरूवो जो, सो कालो हवइ" पदार्थों के परिवर्तन में काल कारण-स्वरूप है । यह उसके परिवर्तन में वैसे ही सहायक है जैसे कुम्हार के मिट्टी- बर्तन निर्माणचक्र में पत्थर । यह पत्थर चक्र में काल द्रव्य:- स्वयं गति पैदा नहीं करता अपितु गतिमान बनाने में सहायक मात्र होता है । काल भी द्रव्य है क्योंकि इसमें उत्पाद व्यय : धौव्य पाये जाते हैं । व्यवहारकाल और निश्चयकाल इसी के आधार पर है । धौव्यता वाचक पद 'वर्त्तना' है और उत्पाद व्ययत्व सूचक पद 'समय' - है । कालद्रव्य दो प्रकार का है । (१) निश्चय (२) व्यवहार । असंख्य, अविभागी कालागु जो लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश में व्याप्त हैं, निश्चयकाल है और 'समय' व्यवहार काल है। उन कालाओं में परस्पर बंध की शक्ति नहीं है जिससे मिल कर वे पुद्गल की तरह स्कन्ध बना सकें । वे “रयरगाणं रासी" की तरह प्रत्येक आकाश प्रदेश में स्थित हैं । ये कालागु अदृश्य, अमूर्त्त एवं निष्क्रिय हैं । काल में परस्पर बन्ध शक्ति का अभाव इसे अस्तिकायत्व से चित करता है । काल में अस्तित्व, ( Exi tence ) तो है परन्तु कायत्व ( विस्तरण - मिलन शक्ति - Exertion ) नहीं है। दो प्रकार के विस्तार विशेष सब द्रव्यों में पाये जाते हैं । पर काल में प्रदेश के अभाव से मात्र ऊर्ध्व (२५५) XX --
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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