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________________ ediese जैन-गौरव-स्मृतियां 5 . . जिस प्रकार धर्म, अधर्म, आकाश एवं कालादि अमूर्तिक के विषय में विज्ञानवेत्ताओं ने अन्वेषण किया है, उस प्रकार आत्मा के विषय में भी। परन्तु वे Ether या Field की तरह आत्मा के विषय में तथ्य नहीं निकाल सके हैं। उन्होंने आत्मा को जानने एवं पकड़ने के लिए कितनी ही चेष्टाएँ की परन्तु अभी तक सफल नहीं हुए हैं। पर इन स्रोतों से एक महत्त्वपूर्ण जैनतत्त्व ( तैजस शरीर) की पुष्टि अवश्य हुई है। एक ऐसा यंत्र बनाया गया जिससे कोई भी चीज बाहर न जा सके। उसमें उत्पन्न होते समय और मरते समय प्राणियों का अनुवीक्षन किया गया । आत्मा नाम की कोई वस्तु तो ज्ञात नहीं हुई परन्तु यह पता चला कि-जब कोई जन्म लेता है तब उसके साथ कुछ विद्युत्वक्र ( elee ric charge ) रहता है, जो मृत्यु के समय लुप्त हो जाता है। पर प्रश्न यह है कि यह चार्ज नाश तो हो नहीं सकता, (Due to conservation of energy) हो फिर कहाँ जाता होगा ? अब लोग इस प्रश्न कोहल करने के लिए एक दूसरा यंत्र बना रहें हैं। जिससे सम्भव है वे ऐसा कर सकें। यह शक्ति जिसे पता लगाने की चेष्टा की जारही है, आत्मा नहीं हो सकती। क्योंकि वह तो अमूर्त है परन्तु इसकी तुलना तैजस शरीर (Electric body) से अवश्य की जा सकती है, जो आत्मा से बहुत घनिष्ट सम्बन्ध रखता है।आत्मा की खोज के प्रयास ने इस एक नये तथ्य की पुष्टि की है। यह ठीक है कि वैज्ञानिकों ने आत्मा की सत्ता नहीं ज्ञात की है, पर आत्मा सम्बन्धी तत्वों के जानकार सर ओ. लोज के अनुवीक्षन ने श्रात्मा के अस्तित्व को निस्संदेह सिद्ध किया है। .. . . . "प्रोटोपाल्म" ( Protoralsm is no lhing hut a riscous . fluid rihich contains every l in c• I.) के सिद्धान्त तथा सर जगदीशचन्द्र वसु के पौधों सम्बन्धी आविष्कार ने आत्मा की संकोचविस्तार वाली प्रवृत्ति सिद्ध कर दी है। . • आकाश से हम हिन्दुओं का सृष्टि मूलभूत आकाश नहीं लेते, अपितु वह जो जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म एवं काल द्रव्यों के लिए स्थान दे । आकाश का यह लक्षण है। अन्य द्रव्यों को अवकाश देना उसका आकाश निरूपण कार्य है। यह द्रव्यों का अवगाहन में कारण है। अमूर्त होने से धर्मादि द्रव्य के एकत्र रहने में कोई विरोध नहीं आता
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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