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________________ >> जैन- गौरव स्मृतिया ★><><>< · है । महत्व है तो गुणों का । जिस व्यक्ति में जितने अधिक गुण हैं वह चाहे किसी भी जाति, वर्ग और श्रेणी का क्यों न हो, उतना ही अधिक सम्माननीय है । जैन परम्परा गुरु पूजक है, व्यक्ति पूजक नहीं । श्रमण परम्परा में प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने कल्याण का मार्ग खुला हुआ हैं जब कि ब्राह्मण परम्परा में अमुक (ब्राह्मण) वर्ग ही धर्मं का अधिकारी माना गया है । श्रसरण संस्कृति में आत्म विकास की प्रधानता है जब कि ब्राह्मण संस्कृति में इह लौकिक विकास का प्राबल्य है | श्रमण परम्परा का आधार तर्क और बुद्धि पर है । जब कि ब्राह्मण परम्परा का आधार भक्ति पर । श्रमण परम्परा में धर्म का स्वरूप अहिंसा संयम और तप है । उसमें धर्म स्वयं मंगल है अर्थात् अपने आप में साध्य है । भौतिक सम्पत्तियों के स्वामी देवता भी धर्मात्मा के चरणों में नमस्कार करते हैं श्रमण संस्कृति यह मानती है कि सभी प्राणियों को जीवन प्रिय है, सुख अच्छा लगता है, दुखः प्रतिकूल है अतः किसी भी जीव को कष्ट पहुंचाना भयंकर पाप है । ब्राह्मण परम्परा में भी “मा हिंस्यात् सर्वभूतानि” का विधान तो हैं मगर वेद विहित हिंसा, हिंसा नहीं है यह कहकर हिंसा का अवलम्बन लिया गया है । इस तरह प्राचीन काल से भारत के आंगन में ये श्रमण और ब्राह्मण परस्परा चली : आरही है | यह निःसंदेह सत्य है कि समय समय पर दोनों विचारधाराएँ एक दूसरे के प्रभाव से प्रभावित होती रही हैं। दोनों परम्पराओं पर एक दूसरे का प्रभाव स्पष्ट रूप से लक्षित होता है । 1 श्रमण परम्परा में तत्कालीन ब्राह्मणोत्तर सब धार्मिक परम्पराओं का समावेश हो जाता है, तदपि बौद्ध और जैन परस्परा का ही उससे प्रधान रूप से ग्रहण होता है । बौद्ध परम्परा वुद्ध के द्वारा प्रवर्त्तित हुई जबकि जैन परम्परा का अस्तित्व इतिहास काल के पूर्व अत्यन्त प्राचीन काल में भी था । सनातन काल से जैन विचारधारा भारतीय धार्मिक जीवन को अनुप्राणित करती आई है | भगवान ऋपसंदेव इस विचार धारा के आद्य प्रवर्त्तक हैं । ब्राह्मण परम्परा के पूर्व आर्यों के आगमन के पूर्व भी भारत में इस विचारधारा का अस्तित्व था, यह आजकल के निष्पक्ष पुरातत्ववेत्ताओं ने अपने अनुसंधानों से प्रकट किया हैं । भगवान ऋषभदेव का उल्लेख प्राचीनं तम ब्राह्मण ग्रन्थों में मिलता है । इस से यह सिद्ध होता है कि जैन धर्म कम से कम ब्राह्मण परम्परा के समानान्तर के रूप में था । इससे इस बात का XNXXMOODIOXXIPX: (५६): XXETIPPOINTEX .. :
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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