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________________ * जैन गौरव-स्मृतियाँ * S ere भर देता है कि वह नवीन रूप में जगमगा उठता है । दुःख और नैराश्य से , मुरझाया हुआ पौधा कर्मवाद से नव जीवन प्राप्त कर लहलहा उठता है । यह .. है कर्मवाद का व्यावहारिक उपयोग। : :: : ........ कर्मवाद जहाँ एक ओर व्यावहारिक शान्ति का मूल है वहाँ वह दूसरी और आत्मा को परमात्मा बनने की प्रेरणा करने वाला अनुपम तत्त्व है। . .. - आध्यात्मिक विकास क्रम -.. ... (गुणस्थान.) ... जैनदर्शन का तत्वज्ञान-निरूपण सर्वतोमुखी है। तत्वज्ञान के प्रत्येक अंग,का तलस्पर्शी विवेचन जैनदर्शन में प्राप्त होता है जहाँ यह बाह्य जगत् की समस्याओं पर प्रकाश डालता है वहाँ अन्तर्जगत् की गूढतम गुत्थियों को सुलझाने में भी उतना ही अग्रसर प्रतीत होता है.। एक और यह व्यवहार का विवेचन करता है और दूसरी और निश्चय की गम्भीर विचारणा भी। एक और यह निवृत्ति का प्रतिपादन करता है वहीं यह प्रवृत्ति का विधान भी करता है एक और यह भौतिक द्रव्यों का वैज्ञानिक निरूपण करता है और दूसरी ओर अध्यात्मा के मार्मिक रहस्यों का उद्घाटन भी। इस प्रकार बाह्य जगत् और और अन्तर्जगत, निश्चय और व्यवहार, प्रवृत्ति और निवृत्ति, भौतिक और आध्यात्मिक सब प्रकार के तत्त्वों का विशद और विस्तृत विवेचन जैनदर्शन में मिलता है। इस प्रकरण में जैनदृष्टि से आध्यात्मिक विकास क्रम पर विचार करता है। जैनदेर्शन में आत्मा के सम्बन्ध में पूरा २ विचार किया गया है। आत्मा का शुद्ध स्वरूप क्या है ? उसकी विभिन्न अवस्थाओं का हेतु क्या है ? उसकी वैभाविक दशा क्यों कर हुई और उसकी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त करने का मार्ग कौनसा है ? आत्मा का पतन और विकास का आधार क्या है ? आत्मा का विकास क्रम किस प्रकार है ? आदि आदि विविध प्रश्न प्रत्येक अध्यात्मविद्या के अभ्यासी के मस्तिष्क में स्वाभाविक रूप से उठते हैं। इन सब प्रश्नों का जैनदर्शन ने युक्तियुक्त समाधान किया है।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
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