SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * जैन-गौरव-स्मृतियां RSS [विषयावतार ] - जैनधर्म, विशाल विश्व रूपी नन्दन वन का सुन्दर पारिजात प्रसून है। जिस प्रकार पारिजात पुष्प में समस्त नन्दन वन को अपने अनुपम सौरम से सुरभित करने की शक्ति रही हुई है इसी तरह जैनधर्म में वह दिव्य शक्ति विद्यमान है कि वह अपने सिद्धान्त सौरभ से समस्त संसार के वायुमण्डल को सौरमान्वित कर सकता है। यह केवल आलंकारिक वर्णन या अतिरंजित प्रशंसा नहीं अपितु वास्तविक सत्य है। जैनधर्म विश्वशान्ति का शाश्वत स्रोत है। विश्व के आंगन में सुख और शान्ति रूपी सुधा का संचार एवं विस्तार करने का सर्वोपरि श्रेय यदि 1 . किसी को है तो वह जैनधर्म को ही हो सकता है। इसमें शान्ति का स्रोत कोई सन्देह नहीं कि जैनधर्म ने ही सर्व प्रथम विश्व के सामने अहिंसा प्रधान संस्कृति प्रस्तुत की। जैनधर्म ही अहिंसामय संस्कृति का आद्य प्रणेता है। अहिंसा के द्वारा ही सच्ची शान्ति मिल सकती है, यह ध्रुव सत्य है। हिंसा, वैर, प्रतिस्पर्धा और युद्ध की दारुण विभीषिका से भयभीत बने हुए विश्व को इस सत्य की थोड़ी बहुत प्रतिती होने लगी है। आज सारा विश्व हिंसा और विनाश के साधनों से संत्रस्त है । सारा वायुमण्डल सम्भावित महायुद्ध के मंझात में अशान्त और विक्षुब्ध हो रहा है। चारों ओर अशान्ति का घोर अधंकार छा रहा है। ऐसे घोर अंधकार मय वातावरण में भी जैनधर्म का अहिंसा सिद्धान्त ही दूर-सुदुर तक चमकती हुई प्रकाश किरणों को फेंकने वाले प्रकाश स्तम्भ की • शांन्ति के मार्ग का निर्देश कर रहा है।
SR No.010499
Book TitleJain Gaurav Smrutiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManmal Jain, Basantilal Nalvaya
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1951
Total Pages775
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy